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'आकांक्षा' की वजह से ज़मीन पर सामानों का स्थानांतरण कर छुई आसमान की ऊँचाइयाँ

एक महिला ने बढ़ाया है रिलोकेशन इंडस्ट्री का दायरा....आकांक्षा ने पुरुष-प्रधान उद्योग में बनाई ख़ास पहचान...परिवार और पिता की विरासत को बढ़ाया आगे...नयी-नयी पहल से किया कारोबार का विस्तार ...

Wednesday January 14, 2015 , 6 min Read


जिनका अपना खुद का मकान नहीं होता , वे लोग अच्छी तरह जानते हैं कि घर-बदलना कितनी तकलीफों से भरा काम होता है। घर के सारे सामानों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाना और उन्हें फिर से सही जगह पर रखना कोई मामूली बात नहीं है। घर में कई सारे सामान ऐसे होते हैं जो बहुत ही नाज़ुक होते हैं। कुछ सामान कीमती, तो कुछ बेशकीमती होते हैं। हर सामान का अपना महत्त्व होता है। इन सामानों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने में कई सारी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। अगर सामान शिफ़्ट करने वाले लोग अच्छे और अनुभवी न हो जो बेशकीमती सामानों से हाथ धोना भी पड़ सकता है। कई लोगों के लिए तो घर बदलने की कल्पना ही पसीने छुड़वा देती है। शहरों की रफ़्तार-भरी ज़िंदगी और आपाधापी में घर बदलने का काम और भी मुश्किल हो जाता है।

इन्हीं मुश्किलों को दूर करने के मकसद से कई लोगों ने भारत में भी "पैकिंग और शिफ्टिंग" का काम शुरू किया। कुछ ही समय के भीतर भारत में "पैकिंग और शिफ्टिंग" एक इंडस्ट्री बन गयी। आज भारत में कई सारी ऐसी कंपनियां हैं जो सिर्फ "पैकिंग और शिफ्टिंग" का काम करती हैं। ये कंपनियां सिर्फ घर-मकान के सामान ही नहीं बल्कि दफ्तर और दूसरे किस्म के सामान भी सुरक्षित शिफ्ट करती हैं।

ज़रूरतमंद लोगों को बस एक फोन कॉल कर इन कम्पनीवालों को बुलाना पड़ता है। और वे घर या मकान, आप जहाँ कहें वहां पहुँच जाते हैं। इसके बाद वो बताये गए सामान की पैकिंग करते हैं और फिर अपनी गाड़ियों में उन्हें रखकर उस जगह सुरक्षित पहुंचा देते हैं जहाँ उन्हें पहुँचाने के लिए बताया गया है । लेकिन , इस काम के लिए कंपनियां लोगों से अच्छी-खासी रकम भी सेवा-शुल्क के रूप में वसूल करती हैं। वैसे तो भारत में ये काम करने वाली अब बहुत सारी कंपनियां हैं , लेकिन कुछ ने अपनी बेहतरीन सेवाओं से खूब लोकप्रियता और प्रसिद्धि हासिल ही है। इन्हीं कंपनियों में एक है पीएमआर यानी पी एम रिलोकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड।

पीएमआर पिछले ३० सालों से सामानों की पैकिंग और शिफ्टिंग की सेवाएं प्रदान कर रही है। २००९ से इस कंपनी ने सामानों की पैकिंग और शिफ्टिंग के अलावा लोगों को और भी नयी-नयी सेवाएं प्रदान करना शुरू किया। इन नयी सेवाओं के पीछे कंपनी की युवा मुखिया आकांशा भार्गवा की सोच और मेहनत है। आकांशा ने २००७ में अपने परिवार के कारोबार में अपना हाथ बटाने का फैसला लिया। कुछ ही दिनों में आकांशा ने कंपनी के रोज़मर्रा के कामकाज में अपनी भूमिका निभानी भी शुरू की। अपने नए-नए विचारों और प्रयोगों से आकांशा ने कंपनी को तरक्की के रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ाया।

ये इसी युवा लड़की की लगन , मेहनत , नयी सोच और प्रयोग का नतीजा था कि सिर्फ पांच साल में कंपनी का सालाना कारोबार २ करोड़ से बढ़कर ३० करोड़ का हो गया।

आकांशा ने नवीन पद्धतियाँ अपनाकर पैकिंग और शिफ्टिंग के उद्योग में अपनी कंपनी की एक नयी और अलग पहचान बनाई । पी एम रिलोकेशन्स अब एक बड़ी और कई सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनी बन गयी है । आकांक्षा की पहल का ही नतीजा था कि पीएमआर अब सिर्फ घर और दफ्तर के सामान ही नहीं बल्कि कलाकृतियों, वैज्ञानिक , सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व वाले सामानों और दूसरे भी अलग-अलग किस्म के सामानों का सुरक्षित स्थानांतरण करने लगी थी। पीएमआर ने आगे चलकर लोगों को उनकी पसंद और ज़रूरतों के मुताबिक नए घर-मकान , दफ्तर , स्कूल आदि ढूंढ़कर देने में भी मदद करने की सेवा शुरू की। कंपनी की सेवाओं के दायरे को बढ़ाने और कारोबार को फैलाने के मकसद से आकांशा ने पालतू जानवरों-पक्षियों के सुरक्षित स्थानांतरण के साथ-साथ लोगों के विदेश-प्रवास में भी मदद करना शुरू किया।

गाड़ियां किराये पर देना और लोगों के सामानों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें "स्टोर" की सुविधा मुहैया करना भी आकांक्षा की सोच का ही नतीजा था।

आकांशा अब ये कहते हुए फूली नहीं समाती कि पीएमआर अब एक छोटी कंपनी नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सुविधाएं मुहैया करने वाली कंपनी है। एक ऐसी कंपनी जहाँ आपको एक ही दफ्तर से , एक ही मंच से कई सारी सेवाएं मिल सकती हैं। आकांशा का दावा है कि पीएमआर अब सामानों के स्थानांतरण से जुडी सारी ज़रूरतें पूरी कर सकती है।

अपनी कामयाबी के कारण गिनाते हुए आकांशा बताती हैं कि उनके पास कर्मचारियों और तकनीशियनों की एक ऐसी टीम है जो अनुभवी , प्रशिक्षित , सक्षम और आधुनिक साज़ो-सामान से लैस है। ख़ास बात तो ये भी है कि पीएमआर अपने आर्डर को सब-कॉन्ट्रैक्ट पर नहीं देती। ना ही अपना कोई ऑर्डर या फिर ग्राहक का काम किसी दूसरों या अन्य कंपनियों से करवाती है। आउट सोर्सिंग नहीं होती। सब काम खुदबखुद कंपनी के कर्मचारी ही करते हैं। कंपनी के पास करीब ३५० निष्टावान और प्रतिभाशाली कर्मचारी हैं। आकांशा को इस बात में भी ख़ुशी मिलती है कि वो एक मायने में ३५० से ज्यादा परिवारों की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। आकांशा का इरादा अपने कर्मचारियों की संख्या को और भी बढ़ाना और ज्यादा से ज्यादा लोगों को पीएमआर से जोड़ना है।

पीएमआर की कामयाबी की एक और बड़ी वजह वो ग्राहक हैं जो उस पर लगातार भरोसा जताते आये हैं और कई सालों से सिर्फ पीएमआर से ही सेवाएं ली हैं। पीएमआर के नामचीन और पुराने ग्राहकों में आज देश-विदेश की कई बड़ी कंपनियां भी हामिल हैं।

अब सबसे महत्वपूर्ण बात "रिलोकेशन इंडस्ट्री" यानी सामानों के स्थानांतरण से जुड़े उद्योग में भी पुरुषों का ही बोलबाला रहा है। पैकिंग और शिफ्टिंग के उद्योग में हर तरफ पुरुष ही हावी हैं। पुरुषों के वर्चस्व वाले इस उद्योग में अपनी ख़ास और मजबूत पहचान बनाने वाली पहली भारतीय महिला आकांक्षा ही हैं। रिलोकेशन इंडस्ट्री में किसी बड़ी और नामचीन कंपनी की पहली महिला चेयरमैन और सीईओ बनने का गौरव भी आकांशा को ही हासिल है। आकांशा ने साबित किया है कि अगर इरादे नेक हों , हौसले बुलंद तो महिलाएं भी पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में कामयाबी के झण्डे गाड़ सकती हैं। आकांशा मानती हैं कि बाज़ार में लोगों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की और संतोषजनक सेवाएं देने वाली कंपनियों की कमी की वजह से उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। एसपी जैन स्कूल ऑफ़ मैंनेजमेंट से एमबीए की पढ़ाई करने वाली आकांशा अपनी कामयाबी का काफी श्रेय अपने पिता को भी देती हैं। उनके मुताबिक , पिता के प्रोत्साहन की वजह से वो बड़े और प्रभावी फैसले ले पाईं। आकांशा के लिए उनके पिता ही गुरु, सलाहकार, मार्गदर्शक, दोस्त और भी बहुत कुछ हैं। आकांशा अपनी कंपनी को और भी बहुत बड़ा बनाना चाहती हैं। उनका इरादा लोगों को और भी नयी सेवाएं देना है। देश के कई बड़े शहरों में अपनी सेवाएं शुरू कर चुकी आकांशा चाहती हैं कि उनकी कंपनी नयी जगह - छोटे-बड़े दूसरे शहरों में भी अपने दफ्तर खोले। लोगों के काम को आसान बनाने के लिए आकांशा ने नयी-नयी वेबसाइटें और मोबाइल फोन ऐप शुरू करने की भी योजना बनाई है।