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कन्नड़ जन-गण-मन के 'राष्ट्र कवि' कुवेम्पु

कन्नड़ जन-गण-मन के 'राष्ट्र कवि' कुवेम्पु

Friday December 29, 2017 , 3 min Read

उनको साहित्य अकाडेमी प्रशस्ति, पद्मभूषण, मैसूरु विश्वविद्यानिलयदिंद गौरव डि.लिट्, 'राष्ट्रकवि' पुरस्कार, कर्नाटक विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, ज्ञानपीठ प्रशस्ति, बॆंगळूरु विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, कर्नाटक रत्न आदि प्रशस्ति एवं पुरस्कारों से समादृत किया गया।

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शिवमोग्गा जिले के तीर्थहल्ली स्थित उनके पैतृक घर में एक दिन चोर घुस गए। कवि कुवेम्पु के ज्ञानपीठ और पद्मश्री पुरस्कार तो सुरक्षित बच गए लेकिन पद्मभूषण प्रतीक को चोर उड़ा ले गए।

कुवेम्पु ने 1 नवंबर, 1994 को 89 वर्ष की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली। कुवेंपू के जन्मस्थान कर्नाटक में कन्नड़ भाषा बोली जाती है और उन्होंने इसे शिक्षा के लिए मुख्य माध्यम बनने के लिए वकालत की। 

कुवेंपु नाम से सृजन करने वाले कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा ऐसे कन्नड़ लेखक एवं कवि रहे हैं, जिन्हें बीसवीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। 29 दिसंबर को जन्मे कवि कुवेंपु की आज 113 वीं जयंती है। वह कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले सात व्यक्तियों में प्रथम थे। पुटप्पा ही आगे चलकर कन्नड़ साहित्य में 'कुवेम्पु' उपनाम से प्रसिद्ध हुए। उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन् 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

इस सम्मान प्रतीक के साथ कुवेम्पु के जीवन का एक दुखद प्रसंग भी जुड़ा है। शिवमोग्गा जिले के तीर्थहल्ली स्थित उनके पैतृक घर में एक दिन चोर घुस गए। कवि कुवेम्पु के ज्ञानपीठ और पद्मश्री पुरस्कार तो सुरक्षित बच गए लेकिन पद्मभूषण प्रतीक को चोर उड़ा ले गए। हेगड़े कुवेम्पु कन्नड़ के राष्ट्रकवि माने जाते हैं, जिनके साहित्य का सर्जनात्मक धरातल वैविध्यपूर्ण है। 'श्री रामायणदर्शनम्' उनकी लोकप्रिय कृति तथा विकसित महाकाव्य है, जो रचनाकार के कृतित्व का केन्द्रबिन्दु है। यू.आर. अनन्तमूर्ति के अनुसार श्री रामायणदर्शनम् को निरन्तर संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस महाकाव्य पर ही उन्हें 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

इसके अलावा महाकवि कुवेंपु ने 1924 से 1981 के बीच अमलन कथे, बोम्मनहळ्ळिय किंदरिजोगि, हाळूरु, कॊळलु, पांचजन्य, कलासुंदरि, नविलु, चित्रांगदा, कथन कवनगळु, कोगिले मत्तु सोवियट् रष्या, कृत्तिके, अग्निहंस, पक्षिकाशि, किंकिणि, प्रेमकाश्मीर, षोडशि, नन्न मने, जेनागुव, चंद्रमंचके बा, चकोरि!, इक्षु गंगोत्रि, अनिकेतन, अनुत्तरा, मंत्राक्षते, कदरडके, तक्यू, कुटीचक, होन्न होत्तारे, समुद्रलंघन, कोनेय तेने मत्तु विश्वमानव गीते, मरिविज्ञानि, मेघपुर, बिगिनर्'स् म्यूस्, अलियन् हार्प्, मोडण्णन तम्म, मलेगळल्लि मदुमगळु, संन्यासि मत्तु इतर कथेगळु, नन्न देवरु मत्तु इतरे कथेगळु, मलेनाडिन चित्रगळु, आत्मश्रीगागि निरंकुशमतिगळागि, साहित्य प्रचार, काव्य विहार, तपोनंदन, विभूति पूजे, द्रौपदिय श्रीमुडि, रसोवैसः, षष्ठि नमन, इत्यादि, मनुजमत-विश्वपथ, विचार क्रांतिगे आह्वान, जनताप्रज्ञे मत्तु वैचारिक जागृति, श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामि विवेकानंद, वेदांत साहित्य, जनप्रिय वाल्मीकि रामायण आदि की रचनाएं कीं।

उनको साहित्य अकाडेमी प्रशस्ति, पद्मभूषण, मैसूरु विश्वविद्यानिलयदिंद गौरव डि.लिट्, 'राष्ट्रकवि' पुरस्कार, कर्नाटक विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, ज्ञानपीठ प्रशस्ति, बॆंगळूरु विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, कर्नाटक रत्न आदि प्रशस्ति एवं पुरस्कारों से समादृत किया गया। कवि कुवेंपू की 113 वीं जयंती पर सर्च इंजन गूगल ने रोचक डूडल बनाकर उन्हें याद किया। 29 दिसंबर, 1904 को मैसूर में जन्मे कुवेंपू पहले ऐसे कन्नड़ लेखक हैं जिन्हे प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने के साथ ही कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान के लिए, कर्नाटक सरकार ने उन्हें 1958 में राष्ट्रकविक (राष्ट्रीय कवि) और 1992 में कर्नाटक रत्न (कर्नाटक के रत्न) के साथ सम्मानित किया था।

कुवेम्पु ने 1 नवंबर, 1994 को 89 वर्ष की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली। कुवेंपू के जन्मस्थान कर्नाटक में कन्नड़ भाषा बोली जाती है और उन्होंने इसे शिक्षा के लिए मुख्य माध्यम बनने के लिए वकालत की। उनके महाकाव्य कथा 'श्री रामायण दर्शन', जो भारतीय हिंदू महाकाव्य रामायण का एक आधुनिक प्रस्तुति है, को महाकविता (महान महाकाव्य कविता) के युग के पुनरुद्धार के रूप में जाना जाता है।

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