Atomic Habits: वो किताब जो सिखाती है अच्छी आदतें लगाने की तरकीबें
विश्व-प्रसिद्ध हैबिट एक्सपर्ट जेम्स क्लियर की किताब न्यूरो साइंस और मनोविज्ञान के सहारे लोगों को अच्छी आदत लगाना सिखाती है. अपने प्रकाशन के सिर्फ़ चार साल के भीतर किताब एक इंटरनेशनल बेस्टसेलर बन चुकी है और बीस भाषाओं में उपलब्ध है.
सभी बड़ी चीजें छोटी शुरुआत से आती हैं। हर आदत का बीज एक छोटा सा फैसला होता है.”
Atomic शब्द के दो अर्थ होते हैं. पहला है बहुत छोटा, और दूसरा है अपार ऊर्जा का स्रोत. Atomic Habits वह छोटी-छोटी आदतें हैं जो आपके जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं.
यह थीम है साल 2018 में प्रकाशित जेम्स क्लियर (James Clear) की बेस्टसेलर बुक एटॉमिक हैबिट्स (Atomic Habits) की. मूलतः अंग्रेजी में लिखी हुई यह किताब अब तक 20 से ज्यादा भाषाओँ में अनूदित हो चुकी है. इसे एक ऑडियोबुक की तरह भी सुना जा सकता है.
हम सब जानते हैं कि किसी आदत को छोड़ना बहुत मुश्किल होता हैं और किसी अच्छी आदत को अपनाना बहुत ही मुश्किल. या यूँ कहें कि आदतें बच्चों जैसी होती हैं. उनको नर्चर करना होता है, सिखाना होता है, उन पर मेहनत करनी होती है. पर जब यही बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वह अपने रफ़्तार पर चलने लगते हैं, सब कुछ खुद से करते हैं. आदतें भी ठीक वैसी ही हैं. आपको बस अच्छी चीज़ों की आदत बनाने की जरुरत है. हमारे दिमाग को जब कोई आदत लगाई जाती है तो फिर हम दिन-रात उसके बारे में सोचते रहते हैं, उसके हर पहलू पर हमारी नज़र रहती है, हम अलर्ट रहते हैं. लेकिन वहीँ जब हमें उस चीज़ की आदत लग जाती है तो उसे करने में कोई एफ़र्ट नहीं लगता. हम गाना सुनते हुए, अपने और सारे काम करते हुए भी उस काम को आराम से करते रहते हैं. यही होता है असल में आदत लगना. एक कमाल का अनुभव.
जेम्स क्लियर विश्व-प्रसिद्ध हैबिट-एक्सपर्ट रहे हैं. इस किताब में वह न्यूरोसाइंस और सायकोलोजी की मदद से छोटी-छोटी आदतों के महत्व को स्थापित करने की कोशिश करते हैं. ओलम्पिक स्वर्ण-पदक विजेता से लेकर फेमस CEOs के उनकी मंजिल तक पहुंचने का विश्लेषण करते हुए किताब में क्लियर यह स्थापित करते हैं कि उनके मंज़िल तक पहुँचने में उनकी एटॉमिक आदतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. किताब की शुरुआत में ही ऑथर गोल और टारगेट सेट करने की मानसिकता को काउंटर करते हुए इन्हें शॉर्ट टर्म व्यू बताते हैं. और उसके उलट, लॉंग टर्म सोचने की सलाह देते हुए आदतें बनाने पर ज़ोर देते हैं.
“आदतें, आत्मा-सुधार का चक्रवृद्धि ब्याज हैं”
आदत बनाने में वक़्त लगता है. वक़्त लगता है. रातों-रात रिजल्ट्स नहीं मिलते. जैसे अभी एक सिगरेट पीने से किसी को लंग कैंसर नहीं हो होगा लेकिन कुछ साल तक पीते रहने के बाद इंसान इस बीमारी की ज़द में आ जाएगा. वैसे ही अच्छी आदतें भी तुरंत ही अपना परिणाम नहीं दिखातीं बल्कि धीरे-धीरे, लगातार करने पर आपको रिवॉर्ड करती हैं.
जेम्स क्लियर लिखते हैं कि ज़रूरी नहीं बहुत बड़ी-बड़ी आदतें ही आपके जीवन की परिस्थितियों को बदलें, बल्कि छोटी-छोटी आदतें अगर आप बहुत लम्बे वक़्त आपके साथ रहेंगी तो आप को बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे.
अगर आप आदतें नहीं बदल पा रहे है या नई आदत नहीं बना पा रहे हैं तो इसका दुष्परिणाम यह होता है कि आपकी विल पॉवर कम हो जाती हअच्छी बात यह है कि आदतें बनाने की शुरूआत करने की कोई उम्र नहीं होती, न ही कोई स्किल चाहिए होता है.
आदत कैसे बनाते हैं?
उस आदत को आपको ऑब्वियस बनाना पड़ेगा
आपने कभी सोचा है कि सुबह उठते ही फोन उठाकर चेक करना हमारी ऑब्वियस आदत कैसे बन गयी? क्योंकि फोन हमारे बिस्तर पर या बगल में पड़ा होती है. उसी तरह अगर आप क्लियर है कि सुबह उठकर किताब पढनी है तो किताब को फोन की जगह लेनी होगी और किताब पढने की आदत ऑब्वियस हो जायेगी.
उस आदत को आकर्षक बनाना पड़ेगा
जो भी काम बोझिल लगेगा, आप उसे नहीं कर पायेंगे. उसका बोझिल होना कम करने का तरीका यह है कि आपक काम के बीच-बीच में छोटे-छोटे ब्रेक्स लेकर उसे पूरा करें. अगर बुक पढनी है तो आप अपनी पसंद की बुक से शुरू करें न की वैसी किताबों से जो हैं तो महान लेकिन आपको जम नहीं रही.
उस आदत को आसान बनाना पड़ेगा
अपने गोल को छोटे-छोटे स्टेप्स में ब्रेक कर लें. एक बार में एक स्टेप करना आसान होता है. 5 पन्ने पढ़ें, धीरे-धीरे पन्ने बढाइये. एक बार आदत पड गयी तो आपकी रफ़्तार खुद-ब-खुद बढने लगेगी.
उस आदत को सैटीस्फायिंग बनाना पड़ेगा
कुछ भी काम आप करते हैं उसके लिए अपने आप को रिवॉर्ड कीजिये. रिवॉर्ड को हमेशा काम के अंत के लिए न छोडें. कुछ ऐसा करें जिससे आदत बनाने को पुश मिले. मतलब, आप बार-बार उस उस काम को करना चाहें. ये वैसी ही बात है जैसे हर दिन ऑफिस जाने का रिवॉर्ड महीने के अंत में पे-चेक के रूप में मिलता है. किताब में एक शादीशुदा जोड़े का उदाहरण है जो एक हेल्दी लाईफ स्टाइल मेन्टेन करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने एक सेविंग्स अकाउंट ओपन किया. जब भी वह बाहर खाना खाने के बदले घर पर खाते थे तो उस अकाउंट में 50 डॉलर ट्रांसफर कर देते थे. उस बचत को देखकर उन्हें जो खुशी मिलती थी वह उन्हें इस अच्छी आदत को बनाए रखने में मदद करती थी.
इसी तरह के उदाहरणों और जीवन प्रसंगों से भरी यह किताब रीडर्स को मोटिवेशन की कमी और अपनी ख़ुद की कमी के फ़र्क को समझाती हुई आदतों के महत्व को हाई लाइट करती है. कई लोग सोचते हैं कि उनमें मोटिवेशन की कमी है जबकि उनमें स्पष्टता की कमी होती है. हम हमेशा नहीं देख पाते कि हमें एक्शन कब और कहाँ लेना होता है. जिसके नतीजे में कई लोग अपना पूरा जीवन उचित अवसर के इंतज़ार में निकाल देते हैं. यह फ़र्क समझना ज़रूरी है. अगर हम अच्छी आदतों को बनाये रखेंगे तो इस ‘हमेशा इंतज़ार में रहने’ के स्टेट ऑफ माईंड से निकल सकते हैं. अच्छी और कारगर आदतों की बदौलत हम वो अवसर ख़ुद बना सकते हैं.
आसान और सरल भाषा में लिखी हुई यह किताब उन लोगों के लिए बेहद काम की साबित हुई है जो काम को कल पर टालने की आदत से ग्रस्त होते हैं. अगर आपको भी यह बुरी आदत लग रही है तो जेम क्लियर की किताब ऑर्डर करना बुरा आइडिया नही होगा.