नौकरी रास नहीं आई, बुनकरों के गांव को बचा रहीं ये BITS पिलानी की पूर्व स्टूडेंट
इंजीनियर की नौकरी छोड़ी तो लोगों ने कहा, दिमाग फिर गया है.
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Sunday June 19, 2022 , 5 min Read
आज से 10 साल पहले अंजलि चंद्रन ने सोचा भी नहीं था कि उनका खड़ा किया हुआ छोटा सा बिजनेस हैंडलूम सेक्टर में झंडे गाड़ देगा. अंजलि ने 2012 में विप्रो (Wipro) कंपनी से इस्तीफ़ा दिया था जहां वो सॉफ्टवेयर इंजीनियर (Software Engineer) थीं. जॉब छोड़कर वो केरल लौट आईं जहां उनका घर था. छोटा सा शहर तिरुवंगूर. चाह बस इतनी थी कि अपनी बेटी के साथ समय बिता सकें.
BITS पिलानी (BITS Pilani) से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुकी अंजलि को घूमना बहुत पसंद है. खासकर ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां के रीति-रिवाज और कल्चर को समझना. ऐसे ही एक ट्रिप पर वो साउथ इंडिया में ही एक ऐसे गांव में पहुँचीं जहां बुनाई का काम होता है. गांव का नाम अंजलि नहीं बतातीं. मगर उसी गांव से अंजलि को एक ऐसा वेंचर शुरू करने का आइडिया आया जिससे उनका जीवन बदलने वाला था.
YourStory से हुई बातचीत में अंजलि बताती हैं: "मुझे एक सीनियर बुनकर मिले जो अपना काम बंद करने पर विचार कर रहे थे क्योंकि उन्हें अपने प्रोडक्ट के लिए मार्केट नहीं मिल रहा था. जब मैंने उनसे उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो अपना प्रोडक्ट बिचौलियों को देते हैं, जो आगे होलसेलर को बेचते हैं और फिर माल अलग अलग शहरों में जाता है."
अंजलि जिस कस्बे से आती हैं, तिरुवंगूर, उसका अर्थ ही है 'करघे की धरती'. अंग्रेजी में कहें तो लैंड ऑफ़ द लूम . यानी वो धरती जहां बुनाई होती है. बचपन से वो ऐसे माहौल में बड़ी हुईं जहां लोग कपड़े बनाते थे. लेकिन धीरे-धीरे मशीनें आ गईं और हाथ से चलने वाले करघे चलन और इस्तेमाल के बाहर हो गए.
हैंडलूम क्रांति
साल 2008 की बात है. अंजलि और उनके पति मलयालम लेखकों के लिए एक फोरम चलाते थे. इस गांव में जाने पर अंजलि ने खूब सस्ते फैब्रिक खरीदे और जब पाया कि बुनकरों का माल बिक नहीं रहा है तो उन्होंने एक फेसबुक पेज बनाया 'इम्प्रेसा' (Impresa) नाम से. इस पेज पर उन्होंने बुनकरों का माल बेचने के लिए पोस्ट्स लिखीं और 12 दिन के अंदर पूरा माल बिक गया.
हैंडलूम (Handloom) के ट्रेडिशनल कपड़ों की डिमांड देखकर अंजलि को आइडिया आया कि इम्प्रेसा को आगे भी आगे बढ़ाया जा सकता है: "मैंने देखा कि प्रोडक्ट इतनी तेज़ी से बिक गए हैं तो मैंने मास्टर बुनकर को फोन लगाया और उनको सूचना दी."
फ़िलहाल इम्प्रेसा बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए एथनिक वियर बनाता है. इसमें बलरामपुरम हैंडलूम मुंडू, साड़ी, कुर्ते शामिल हैं जो इक्कत और ब्लॉक प्रिंट में कॉटन फैब्रिक में मिलते हैं.
प्रोडक्ट्स की रेंज 250 से शुरू होकर 20,000 रुपये तक जाती है. महंगे प्रोडक्ट्स में ज़री और सोने का काम शामिल है. बुनकरों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इम्प्रेसा ये प्रोडक्ट खुद ही रीटेल करता है. ये सभी प्रोडक्ट या तो ऑनलाइन मिलते हैं, या कोझिकोड में इम्प्रेसा के रीटेल स्टोर में मिलते हैं. इम्प्रेसा अब तक कुल 50,000 प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन सेल कर चुका है.
जैसे-जैसे मार्केट में एथनिक हैंडलूम की डिमांड बढ़ रही, वैसे-वैसे तमाम बिजनेस इसमें उतर रहे हैं. लेकिन अंजलि के मुताबिक़ उनका एक लॉयल कस्टमर बेस है जिसे खोने का उन्हें डर नहीं है. इम्प्रेसा की तरह ही 'पिक माय क्लॉथ' और 'माय सिल्क लव' कुछ ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो बिना बिचौलियों के हैंडलूम प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं.
बीते 10 साल में अंजलि ने लगभग 300 कारीगरों के साथ काम किया है. ये कारीगर केरल, बेंगलुरु और चेन्नई से आते हैं. अंजलि बताती हैं कि जब उन्होंने मास्टर बुनकर से कहा कि ऑर्डर ज्यादा हैं और उन्हें जल्दी-जल्दी डिलीवर करना होगा तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि हैंडलूम इंडस्ट्री में इस तरह काम नहीं होता. अंजलि को मालूम है कि डिमांड कितनी भी बढ़े, कारीगर को उसकी स्पीड से काम करने देना महत्वपूर्ण है. अंजलि बताती हैं कि काम इतना महीन होता है कि महीनों से लेकर साल भी उसे ख़त्म करने में लग सकते हैं.
"हैंडलूम का बिजनेस धीरज का बिज़नस है. अगर आप पैसों के लिए बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो ये सेक्टर आपके लिए नहीं है", अंजलि बताती हैं.
अंजलि की मेहनत तब रंग लाई जब विदेश में भी उनका नाम हुआ. पेरिस के संस्थान केपजैमिनी ने इम्प्रेसा को 2017 में दुनिया के 10 बेहतरीन सोशल स्टार्टअप्स की लिस्ट में रखा. अगले साल उन्हें अमेरिकी सरकार की तरफ से 'इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम' में अपने अनुभव साझा करने के लिए बुलाया गया.
कोरोना काल में जब छोटे उद्यमों को चलने में तकलीफ पेश आ रही थी, इम्प्रेसा ने औरतों के उद्यमों के लिए अपना प्लेटफॉर्म खोल दिया और लगभग 10 ब्रांड अपने बिजनेस में जोड़े.
"मुझे पता है कि कोई भी बिजनेस खून-पसीना लगाकर खड़ा होता है. और अगर आप महिला हैं तो ये और भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए मुझे लगा कि कोविड 19 के दौर में ऐसी महिलाओं की मदद करनी चाहिए."
मुश्किलें
अंजलि ने जब इम्प्रेसा की शुरुआत की तो उनका लक्ष्य था बिचौलियों को हटाना. मगर जब वो इस आइडिया के साथ बुनकरों तक पहुंचीं तो उन्हें पता चला कि बुनकरों का भरोसा जीतना इतना आसान नहीं था. गांव में बिचौलियों का नेटवर्क इतना मज़बूत था कि उनकी मदद के बिना बुनकरों तक पहुंचना अपने आप में बहुत मुश्किल काम था. लेकिन आज कई साल बाद बुनकरों के लिए अंजलि परिवार के एक सदस्य की तरह हैं.
लेकिन मुश्किल सिर्फ इतनी ही नहीं थी. जिस समय आईटी सेक्टर उड़ान भर रहा था, अंजलि ने उसे छोड़कर अपना बिज़नस शुरू कर दिया था. लोगों को लगता था कि अंजलि का दिमाग फिर गया है.
अंजलि बताती हैं: "जो माता-पिता अपने बच्चों को मेरे पास करियर एडवाइस के लिए भेजते थे, वो कहने लगे कि मेरे जैसा कभी नहीं बनना चाहिए. कुछ ने मेरे मुंह पर कहा- अच्छी खासी नौकरी छोड़कर छोटी सी दुकान खोलने में शर्म नहीं आती?"
मगर अंजलि को तनिक भी मलाल नहीं है. जो उन्होंने चाहा था, पा लिया है.
Edited by Prateeksha Pandey