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ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब, पद्म श्री: क्या रहा है तीन महीने में तीन बड़े सम्मान पाने वाले एम.एम. कीरवानी का सफर

कीरवानी के संगीत के हम तब भी दीवाने थे, जब उनका नाम भी नहीं जानते थे.

ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब, पद्म श्री: क्या रहा है तीन महीने में तीन बड़े सम्मान पाने वाले एम.एम. कीरवानी का सफर

Monday March 13, 2023 , 6 min Read

1994 का साल था. सिनेमाघरों में एक फिल्‍म रिलीज हुई थी- ‘क्रिमिनल.’ फिल्‍म तो बॉक्‍स ऑफिस पर सुपरहिट हुई ही, लेकिन सबसे ज्‍यादा कोहराम मचाया फिल्‍म के म्‍यूजिक ने. सिनेमा हॉल से निकलते हुए लोग गुनगुना रहे होते- ‘तू मिले, दिल खिले, अब जीने को जीने को क्‍या चाहिए.’

विविध भारती पर तकरीबन रोज एक बार यह गाना सुनाई देता. वो स्‍मार्ट फोन और इंटरनेट का जमाना नहीं था. इंटरनेट आ चुका था, लेकिन आम लोगों तक नहीं पहुंचा था. ऑडियो कैसेट का समय जा रहा था और सीडी आ रही थी. क्रिमिनल फिल्‍म ने जितना पैसा फिल्‍म से कमाया था, उससे कहीं ज्‍यादा उसकी म्‍यूजिक सीडी की बिक्री से कमाया.

तब कोई यह पूछता भी नहीं था कि गाना किसने लिखा है, किसने म्‍यूजिक कंपोज किया है. जैसे एक समय में फिल्‍म लिखने और डायरेक्‍ट करने वालों का भी बहुत नाम नहीं होता था. फिल्‍म सिर्फ लीड हीरो और हिरोइन की होती.

लोगों के लिए इस गाने का अर्थ था नागार्जुन और मनीषा कोईराला.

कोई एम.एम करीम का नाम भी नहीं जानता था. 1994 से लेकर अगले 10 सालों तक एम.एम. करीम हिंदी वालों के लिए गुमनाम शख्‍स थे. लोग सिर्फ उन गानों के मुरीद थे, जो वो नहीं जानते थे कि कंपोज किसने किए हैं.  

1998 में आई फिल्‍म जख्‍म के एक गाने, “गली में आज चांद निकला” ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. आज भी कहीं वो गीत बज रहा हो तो कदम एकदम से ठिठक जाते हैं. फिर एक बहुत औसत फिल्‍म का जादुई गाना आया, “जादू है, नशा है”, जो महीनों तक लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा.

यह सारे गाने एक ही शख्‍स ने कंपोज किए थे, जिसका नाम है एम.एम. कीरावनी. कोडुरी मराकथामनी कीरावनी. 1987 में अपने म्‍यूजिकल कॅरियर की शुरआत करने वाले 61 बरस के कीरावनी के लिए यह साल किसी दूरे के सपने के सच हो जाने जैसा है. इस साल एसएस राजामौली की फिल्‍म RRR के गाने नाटू-नाटू के लिए पहले उन्‍हें गोल्‍डन ग्‍लोब से नवाजा गया और अब ऑस्‍कर. भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह पहली बार हुआ है.

after golden globe academy award for indian music composer  m. m. keeravani

यह अवॉर्ड, यह उपलब्धि सिर्फ कीरवानी की नहीं, बल्कि पूरे देश की है, हम सबकी है. जैसे ‘एवरीथिंग, एवरीव्‍हेयर ऑल एट वंस’ के लिए बेस्‍ट सपोर्टिंग एक्‍टर का ऑस्‍कर जीतने वाले वियतनामी मूल के अभिनेता की हू क्‍वान ने स्‍क्रीन एक्‍टर्स गिल्‍ड अवॉर्ड के मंच से कहा था, “यह अवॉर्ड सिर्फ मेरा नहीं है, यह हर उस शख्‍स है, जिसने बदलाव की उम्‍मीद की, मांग की. जब मैंने एक्टिंग छोड़ी थी तो इसलिए क्‍योंकि तब मौके ही बहुत कम थे. आज इतने सारे लोग हैं, अब परिदृश्‍य काफी बदल गया है. उन सबका शुक्रिया, जिन्‍होंने इस बदलाव अपना योगदान दिया है.”

यह बदलाव की शुरुआत भी है. यह मोनोपोली के टूटने की, पीछे रहे गए देशों को, लोगों को स्‍वीकारने, उन्‍हें जगह देने और डायवर्सिटी को एक्‍सेप्‍ट करने की शुरुआत है.

यह हमारे लिए भी एक मौका है, उस व्‍यक्ति की जीवन यात्रा को एक बार फिर पलटकर देखने और उसे सेलिब्रेट करने का, जो लंबे समय तक हमारी संगीत की समझ और दुनिया को अपने जादुई काम से समृद्ध करता रहा.

तमिल, तेलुगू, मलयालम और हिंदी सिनेमा को अपने संगीत से समृद्ध करने वाले कीरवानी लंबे समय तक अलग-अलग फिल्‍म इंडस्‍ट्री के लिए अलग-अलग नामों से काम करते रहे. तेलुगू में कीरावनी, तमिल और मलयालम में मराकथामनी और हिंदी में एमएम करीम. कोई नहीं जानता था कि ये तीनों शख्‍स दरअसल एक ही हैं.

कीरावनी के बारे में एक किस्‍सा बड़ा मशहूर है. तेलुगू फिल्‍म इंडस्‍ट्री के पितामह रामोजी राव के लिए कीरावनी ने कई फिल्‍मों का म्‍यूजिक कंपोज किया था. एक फिल्‍म पर काम करने के लिए फिल्‍म के निर्देशक से उनका कुछ मतभेद हो गया. उन्‍होंने फिल्‍म पर काम करने से इनकार कर दिया. रामोजी राव ने जब इसकी वजह पूछी तो उन्‍हें बड़ा सदमा सा लगा. तब कोई इस भाषा में बात नहीं करता था. क्रिएटिव डिफरेंस या रचनात्‍मक मतभेद जैसे शब्‍द अनसुने से थे. रामोजी राव को बड़ा गुस्‍सा आया. उन्‍होंने अपने असिस्‍टेंट से कहा कि कीरवानी की जगह किसी और को लेकर आओ. कोई एम.एम. करीम है. उसका म्‍यूजिक भी बहुत अच्‍छा है.

रामोजी राव को भी पता नहीं था कि कीरवानी ही एमएम करीम है.

एक और किस्‍सा है निदा फाजली का. जब एक फिल्‍म के सिलसिले में वो कीरवानी से मिलने चेन्‍नई गए और घंटों उनका पता ढूंढते रहे. दरअसल हुआ ये था कि निदा फाजली तो एमएम करीम को ढूंढ रहे थे और चेन्‍नई में कोई एमएम करीम था ही नहीं.

कीरवानी का जन्‍म 4 जुलाई, 1961 को आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावारी जिले में हुआ था. पिता कोदुरी शिव शक्ति दत्‍ता पेंटर और म्‍यूजिक कंपोजर थे. उन्‍होंने फिल्‍मों के लिए गाने और स्‍क्रीनप्‍ले भी लिखे थे. मुंबई के सर जेजे स्‍कूल से ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई करने वाले पिता ने बचपन से ही संगीत से कीरवानी का परिचय कराया. 10 साल की उम्र से वो वॉयलिन और हॉरमोनियम बजाना सीखना शुरू कर दिया था. बचपन में म्‍यूजिक कॉन्‍सर्ट में बजाया करते थे.

 

कीरावनी के भाई कल्‍याणी मलिक भी म्‍यूजिक डायरेक्‍टर और सिंगर हैं. RRR फिल्‍म के निर्देशक एस राजामौली कीरावनी के कजिन हैं. उनका भतीजा दक्षिण भारतीय फिल्‍मों का जाना-माना निर्देशक विजयेंद्र प्रसाद है. उनके दोनों बेटे भी संगीत से जुड़े हैं और गाते हैं. एक तरह से पूरा परिवार ही किसी ने किसी रूप में सिनेमा और संगीत से जुड़ा हुआ है.

फिल्‍म इंडस्‍ट्री में अपनी जगह बनाने की कीरावनी की यात्रा भी आसान नहीं रही. लंबे समय तक बतौर असिस्‍टेंट काम करने के बाद जब उन्‍हें पहला बड़ा ब्रेक मिला तो वो फिल्‍म रिलीज ही नहीं हुई. 1991 में आई राम गोपाल वर्मा की तेलुगू फिल्‍म शना शनम वह पहली हिट फिल्‍म थी, जिसने कीरावनी को बतौर म्‍यूजिक डायरेक्‍टर इंडस्‍ट्री में स्‍थापित कर दिया. फिर हिंदी फिल्‍मों के संगीत ने उन्‍हें एक पैन इंडिया पहचान दी.

अब सिनेमा भी क्षेत्रीयता की सीमाएं लांघकर पैन इंडिया होता जा रहा है. पिछले कुछ सालों में जैसे हिंदी की सुपरहिट और सबसे ज्‍यादा कमाई करने वाली फिल्‍मों में दक्षिण भारतीय फिल्‍में आई हैं, उसके बाद अब सिनेमा सिर्फ एक भाषा और क्षेत्र का नहीं रह गया है. कीरवानी साहब इंटरनेट के पहले भी पैन इंडिया थे, लेकिन अब वे ग्‍लोबल हो चुके हैं. उम्‍मीद की जानी चाहिए कि आने वाले सालों में कुछ ग्‍लोबल फिल्‍मों में भी हमें उनका संगीत सुनने को मिल सकता है.