गरीब, पिछड़े बच्चों की बुनियाद ढाल रही हैं पर्वतीय बाल मंच की 'मां' अदिति कौर
सुशिक्षित, संपन्न होने के बावजूद अदिति पी. कौर ने अपने भविष्य की कठिन राह चुनी। नौकरी छोड़कर पहाड़ी गांवों की ऊबड़-खाबड़ राह चल पड़ीं। वहां के गरीब बच्चों की बुनियाद ढालने लगीं। अब ये बच्चे हजारों की संख्या में, अदिति के नेतृत्व में तमाम पहाड़ी गांव गोद लेकर बड़े बुजुर्गों को उनकी जिम्मेदारियां सिखा रहे हैं।
उत्तराखंड में पिछले ढाई दशक से उत्तराखंड के विकास नगर क्षेत्र में पर्वतीय बाल मंच गठित कर हजारों बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव ढाल रहीं अदिति पी. कौर का बचपन और प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में हुई है। उनकी मां एक कलाकार हैं और पिता भारतीय नौसेना के रिटायर्ड अफसर। वह इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट एंड न्यूट्रिशन, लखनऊ से होटल मैनेजमेंट में स्नातक करने के बाद ताज पैलेस, मौर्य शेरेटन, दिल्ली और भोपाल के आमेर पैलेस में काम करती रही हैं।
उनका नौकरी में मन नहीं लगा तो बच्चों की राह चल पड़ीं उनकी आवाज बनने के लिए। आज अदिति आम लोगों के बीच गुमनाम हों, लेकिन वह उन बच्चों के लिए आदर्श हैं, जिनके लिए वह भाग्यविधाता बन चुकी हैं। गांव में अदिति के आने की खबर मिलते ही बच्चे फूल मालाओं के साथ उनकी अगवानी को उमड़ आते हैं।
आज वह एक ऐसी गुमनाम नायिका बन चुकी हैं, जिनकी ममता की छांव ने कई बच्चों की किस्मत को बदल दिया। सादगी, ममता, सहजता और मातृशक्ति की मिसाल अदिति अविवाहित हैं, लेकिन असल मायनों में वे एक मां की भूमिका निभा रही हैं। पहाड़ के दूरस्थ जिन गांवों के बच्चे ठीक से अपना नाम बताने में भी हिचकिचाते थे, वह आज विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम कमा रहे हैं। वह बच्चों की अंगुली थाम कई परिवारों को शिक्षा, स्वास्थ्य और अपने हक के लिए लड़ना सीखा रही हैं। एक संपन्न परिवार से होने के बावजूद अदिति पी कौर ने सादगी का जीवन चुना।
उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव तब आया, जब वह पहली बार टिहरी के एक गांव में पहुंचीं। वहां उन्होंने संपन्न परिवारों और गरीब परिवारों के बच्चों के बीच के अंतर को शिद्दत से महसूस किया। उन्होंने वर्ष 1997 में श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम, टिहरी गढ़वाल में सिरिल आर राफेल से मुलाकात की, जो उन्हे अपने गॉडफादर जैसे लगे।
उन्होंने ने ही अदिति को बताया कि हम अपने समाज में बदलाव कैसे ला सकते हैं। पहाड़ के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों को एक मंच की आवश्यकता है। इसके बाद अदिति तीन साल वहीं रुकी रहीं। इसके बाद पहाड़ की परिस्थितियों, वहां के बच्चों, समुदायों को उन्हे बहुत करीब से जानने का अवसर मिला।
उस दौरान उन्होंने खुद में मैंने अपने आप में कई तरह के बदलाव महसूस किए। और आखिरकार उन्होंने पहाड़ के जरूरतमंद बच्चों के लिए अपना आगे का जीवन जीने का संकल्प लिया।
उसके बाद से अदिति पिछले 24 वर्षों से पर्वतीय क्षेत्र के बच्चों को आत्मविश्वासी बनाने में जुटी हुई हैं। वर्ष 2000 में उन्होंने पर्वतीय बाल मंच (पबम) का गठन किया। उनकी अध्यक्षता और नेतृत्व में अब यह संस्था उत्तराखंड के सुदूर पिछड़े, संसाधनहीन गांवों में जाकर बच्चों को उनके अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती है।
संस्था उत्तराखंड के गांवों में बच्चों के समूह गठित कर उन्हे बाल अधिकारों, बाल सहभागिता, बाल संरक्षण, भेदभाव, सूचना के अधिकार, स्वच्छता, जन्म पंजीकरण आदि के बारे में खेल-खेल में पारंगत कर रही है। अदिति इस समय विकासनगर, देहरादून और चमोली जिलों के बच्चों के साथ काम कर रही हैं।
अदिति के नेतृत्व में विकास नगर की बच्चियां स्वच्छता के बारे में लोगों को जागरूक करती हुई अपने गांवों में सस्वर जनजागरण में जुटी हैं - ‘वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो, हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे, ध्वज कभी झुके नहीं, दल कभी रुके नहीं।’ ऊबड़-खाबड़ रास्ते तय करते हुए गाँवों को स्वच्छ बनाने के लिए पर्वतीय बाल पंचायतों के बच्चे बड़े-बुजुर्गों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास करा रहे हैं।
पर्वतीय बाल मंच ने इस समय विकासनगर के 12 गाँवों को गोद ले रखा है। रुद्रपुर के गाँवों में नौनिहाल ग्रामीणों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के साथ ही स्वच्छता का वास्तविक अर्थ भी समझा रहे हैं। उन्होंने इन गांवों में 1210 कूड़ा निस्तारण प्वाइंट बनाए हैं। ये बच्चे सबसे पहले बस्ती से दूर गड्डे खोदते हैं, फिर उन्हें ढँक कर ग्रामीणों को उन गड्डों में ही कूड़े डालने के लिए प्रेरित करते हैं। वे बच्चे अब तक दर्जन भर उन गांवों पसौली, लांघा, भूड, देवथला, पष्टा, पीपलसार, मल्लावाला, धोरे की डांडी, बड़कोट, तौली, पपडियान में 1200 गड्डे खोदकर ग्रामीणों को जैविक-अजैविक कूड़ा निस्तारण में प्रशिक्षित कर चुके हैं।
अदिति के नेतृत्व में वे नौनिहाल सरल तरीकों से ग्रामीणों को गन्दगी से होने वाले नुकसान की जानकारी देते हैं। इसके लिए रस्सी और धागे के सहारे जमीन पर पारिस्थितिकीय तंत्र को समझे रहे हैं। रस्सी के जाल के माध्यम से वे बताते हैं कि गन्दगी वाले क्षेत्रों में धरती पर मानव और अन्य प्राणियों का जीवन किस तरह बीमारियों के संजाल में जकड़ता जा रहा है। किस तरह पर्यावरण को इसका भारी आघात लगा है।
बच्चे पोस्टर बनाकर ग्रामीणों को गन्दगी से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी देते हैं। व्यक्ति के पैर के चित्र बनाकर बताते हैं कि प्लास्टिक और अन्य तरह की गन्दगी से प्रतिदिन घर के अन्दर कितना कॉर्बन और गन्दगी पहुँचती है। पैर पर कॉर्बन और गन्दगी लगे हिस्से को काले रंग से रंगकर उससे होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी देते हैं।