मिलिए एमबीबीएस करने के बाद 24 साल की उम्र में गांव की सरपंच बनने वाली शहनाज खान से
निकटतम प्रतिद्वंदी को 195 वोटों से मात देकर 24 साल की उम्र में गांव की सरपंच बन गई ये MBBS लड़की...
शहनाज अभी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रही हैं। उन्होंने अपनी 10वीं तक की पढ़ाई गुड़गांव के श्रीराम स्कूल से की उसके बाद 12वीं की पढ़ाई मारुति कुंज के दिल्ली पब्लिक स्कूल से की।
शहनाज ने कहा कि वह अपना उदाहरण लोगों के सामने पेश करेंगी जिससे यहां की लड़कियों को कुछ मदद मिलेगी और समाज में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता भी आएगी।
किसी भी युवा से आप देश में हो रहे भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के बारे में चार बातें कर लीजिए, लगभग हर युवा यही कहेगा कि सिस्टम में खराबी है। लेकिन सिस्टम का हिस्सा बनने के बारे में अगर आप उनसे पूछेंगे तो यही जवाब मिलेगा कि इसमें उनकी दिलचस्पी नहीं है। समाज की इस कड़वी हकीकत को साकार करने का बीड़ा उठाया है राजस्थान के भरतपुर जिले की रहने वाली शहनाज खान ने। शहनाज वैसे तो मुरादाबाद से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं, लेकिन उन्होंने अपने गांव में सरपंच का चुनाव जीतकर एक नई इबारत रच दी है। 24 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखने वाली शहनाज भरतपुर के कामां पंचायत से सरपंच चुनी गई हैं।
शहनाज अभी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रही हैं। उन्होंने अपनी 10वीं तक की पढ़ाई गुड़गांव के श्रीराम स्कूल से की उसके बाद 12वीं की पढ़ाई मारुति कुंज के दिल्ली पब्लिक स्कूल से की। मेवात राजस्थान और हरियाणा से जुड़े होने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी से कुछ ही दूर पर स्थित है, लेकिन उसके बाद भी यहां लड़कियों का शिक्षा स्तर काफी खराब स्थिति में है। शहनाज जिस मुस्लिम मेव समुदाय से आती हैं, वहां तो लड़कियों की हालत और भी दयनीय है। लोग बताते हैं कि वह अपने इलाके में इतनी पढ़ाई करने वाली इकलौती लड़की हैं।
वह अपने गांव की सबसे युवा सरपंच बन गई हैं। उनके गांव में किसी भी लड़की ने इतनी पढ़ाई नहीं की। टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए शहनाज ने कहा, 'मेवात में लोग अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं। मैं लड़कियों की शिक्षा पर काम करना चाहती हूं और उन सभी अभिभावकों को अपना उदाहरण दूंगी जो बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते।' शहनाज ने सोमवार को सरपंच पद की शपथ ली। जिला कलेक्ट्रेट में अधिकारी हरेंद्र सिंह ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाई। उन्हें गुड़गांव के एक सिविल अस्पताल में अपनी इंटर्नशिप भी पूरी करनी है। जिसके बाद वह आगे पोस्ट ग्रैजुएट स्तर की पढ़ाई भी करना चाहती हैं।
शहनाज ने कहा कि वह अपना उदाहरण लोगों के सामने पेश करेंगी जिससे यहां की लड़कियों को कुछ मदद मिलेगी और समाज में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता भी आएगी। वह कहती हैं, 'यहां के लोगों में टीबी की बीमारी काफी ज्यादा है। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसे 6 महीने के उपचार में ठीक किया जा सकता है, लेकिन लोगों को यह बात भी पता नहीं है।' शहनाज के सामने कई और मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्विंदी इश्तियाक खान को 195 वोटों से मात दी। उन्हें राजनीति विरासत में मिली है। उनका पूरा परिवार राजनीति से जुड़ा रहा है।
इतनी कम उम्र में राजनीति में पदार्पण करने वाली शहनाज के पैरेंट्स भी राजनीति के धुरंधर रहे हैं। उनकी मां जाहिदा खान कामां विधानसभा सीट से 2008 में कांग्रेस से विधायक रह चुकी हैं और पिता जलीस खान ब्लॉक स्तर पंचायत समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं। शहनाज खान के दादा हनीफ खान इसके पहले गांव के सरपंच थे, लेकिन उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया जिसके बाद फिर से चुनाव हुए और इस बार शहनाज ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। शहनाज के नाना चौधरी तैयब हुसैन पंजाब, हरियाणा और राजस्थान दोनों राज्यों में केबिनेट मंत्री रहे। वे फरीदाबाद से दो बार फरीदाबाद से सांसद भी रहे।
राजस्थान में पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम 10वीं कक्षा पास होना जरूरी है। लेकिन उनके दादा जी को कोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर चुनाव लड़ने के कारण अयोग्य ठहरा दिया गया। शहनाज ने कहा, 'मेरा राजनीति में आने का प्रमुख कारण यहां पढ़ाई के प्रति के लोगों की जागरूकता का कम होना था। मेरे सरपंच बनने से मेवात की लड़कियां शिक्षा को लेकर जागरूक होंगी। अभिभावक भी इस ओर ध्यान देंगे।' उन्होंने कहा कि वह लोगों की जिंदगी को आसान बनाना चाहती हैं। वह कहती हैं, 'लोगों की आवाज उठाना और समस्याओं को हल करवाना मेरा मकसद है। इसके लिए मैं प्लान बनाकर काम करूंगी। मेरे परिवार इन सबसे लंबा वास्ता रहा है। गांवों के विकास में इनकी मदद लूंगी।'
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