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उम्मीदों के आसमान पर हुनर की डोर से सफलता की उड़ान

इंफ्राकिड्स की सह-संस्थापक इंजीनियरिंग में स्नातक

उम्मीदों के आसमान पर हुनर की डोर से सफलता की उड़ान

Monday November 14, 2016 , 4 min Read

वक्त जब करवट लेता है तो बाजियां ही नहीं, इंसान का जिंदगी तक पलट जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ मनीषा अरोड़ा के साथ। जो शादी के करने के बाद अपना घर बसा चुकी थी। शादी के बाद एक बड़ा सा घर था, खाली वक्त में दोस्तों के साथ किट्टी पार्टी, और शॉपिंग। जिंदगी मजे से कट रही थी। लेकिन उनकी जिंदगी में कारोबार करना लिखा था यही वजह है कि आज उनको बेंगलौर आये छह महीने भी पूरे नहीं हुए हैं और वो इंफ्राकिड्स नाम की एक कंपनी की सह-संस्थापक है। ये कंपनी नेटवर्क संबंधी दिक्कतों को दूर करती है। इसके साथ वो होम कैटरिंग का प्रयोग भी कर रही हैं। उनके दोस्तों के मुताबिक उनके बनाये पराठों का कोई मुकाबला नहीं।

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मनीषा पंजाब के गुरदासपुर जिले के सुंदर गन्ने और सरसों के खेत छोड़, कंक्रीट के जंगलों से बने बेंगलौर जैसे शहर में रही है। इंजीनियरिंग में स्नातक और आईआईएम, लखनऊ से मैनेजमेंट डिप्लोमा होल्डर मनीषा काफी जोशीली हैं। तभी तो फुर्सत के पलों में वो दौड़ना पसंद करती हैं। मनीषा हाल ही में सनफीस्ट मैराथन में भी हिस्सा ले चुकी हैं। अपनी फिटनेस को लेकर वो काफी उत्साहित रहती हैं। इतना ही नहीं जहां पर वो रहती हैं वहां उन्होने सामूहिक डांस की पहल कर लोगों को एक साथ जोड़ने की कोशिश की है। इस समूह में ना कोई अध्यापक है और ना कोई शिष्य। यहां जिसका मन जैसा किया वो वैसा डांस कर सकता है।

एक जूझारू खिलाड़ी की तरह मनीषा मौके का इंतजार करती हैं और उचित समय पर सही कदम उठाती हैं। योर स्टोरी की उत्साही फालोअर के तौर पर वो दैनिक खुराक के तौर पर इन कहानियों से प्रेरणा लेती हैं। पिछले दिनों ‘हर स्टोरी मीट अप’ के दौरान कई महिला उद्यमी इकठ्ठा हुई। इस दौरान उन्होंने अपनी अपनी कहानियां एक दूसरे साथ बांटी। यहां पर फिटनेस एक्सपर्ट चंद्रा गोपालन ने एक स्फूर्तिदायक सत्र का भी आयोजन किया था। यहां आई महिलाओं का कहना था कि महिलाओं की आवाज और उनके विचार जानने के लिए ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत है साथ ही ऐसे मौकों पर एक दूसरे से जान पहचान भी बढ़ती है।

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यहां पर मनीषा ने भी कई महिला उद्यमियों के साथ ना सिर्फ अपने विचार साझा किये बल्कि उनके साथ अपनी जान पहचान बढ़ाने के लिए फोन नंबर भी लिया। यही वजह रही कि यहां आई एक महिला उद्यमी ने उनसे कहा कि वो स्वास्थ्यवर्धक पास्ता और स्वादिष्ट शोसेज बनाती तो हैं ही कई बार ऑर्डर पर रात का खाना भी बनाती हैं। उन महिला सदस्य ने मनीषा को बोला क्या पता किसी दिन तुम्हारे पराठा बनाने के कौशल का इस्तेमाल करें या फिर हम मिलकर इसमें कुछ नया करें। एक ओर महिला उद्यमी ने मनीषा से कहा कि हमें अपने ऑफिस में घर के बने लंच की जरूरत होती है तो वो क्यों ना ढाबे का काम शुरू नहीं कर देती। मनीषा बताती हैं कि “मैं अपने पिता के प्रभाव के कारण खुद का कुछ नया करने का सपना देखती थीं। मेरे लिये मेरे पिता प्रेरणा हैं। फिलहाल वो 64 साल के हैं लेकिन आज भी वो नई चीजों को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं। यही कारण है कि वो कई बिजनेस एक साथ कर रहे हैं।“

कुछ साल पहले पिता और बेटी ने एक सपना देखा था। सपना था पंजाब में डिस्टिलरी प्लांट की स्थापना का। मनीषा ने अमृतसर से गुरू नानक देव विश्वविद्यालय से शुगर और एल्कोहल टेक्नॉलीजि में बीटेक किया था। इसके बाद दोनों ने मिलकर गन्ना उत्पादित इलाकों का दौरा किया। यहां तक की उत्तर-प्रदेश के मुजफ्फरनगर जैसे इलाके का भी। ताकि वो इस बिजनेस को समझ सकें। लेकिन उनके पिता ने कहा कि ये काम उनके लिए सुरक्षित नहीं है इसलिए उनको अपने पांव पीछे खिंचने पड़े।

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इसके बाद मनीषा ने अपने प्लान बी पर काम करना शुरू कर दिया और फ्रेंच भाषा सीखने के लिए अपना नामंकन कराया। कुछ समय बाद अपनी सोच को विस्तार देने के लिए वो पूना आ गईं। इस दौरान वो एक नौकरी से दूसरी नौकरी करती रहीं और नये तजुर्बे सीखती रहीं।

अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए मनीषा बताती है कि “मुझे याद है कि जब मेरे पिता ने पहली बार अपना बिजनेस शुरू किया था तो उन्होने अपनी पहली आमदनी मुझे दी थी। (हालांकि वो बहुत कम पैसे थे) ताकि पैसे सुरक्षित रह सकें। तब से मुझे एक बात हर वक्त याद रहती है कि हर बड़ी चीज की शुरूआत छोटे से होती है।”