विश्व पत्रकारिता: कितनी आज़ाद, कितनी सुरक्षित
पत्रकारिता को सत्ता और प्रशासन का वॉचडॉग कहा जाता है लेकिन अगर पत्रकारिता ही सत्ता के हाथों की कठपुतली बन जाएगी तो मनमानी बढ़ जाएगी, दुनिया भर में उच्छृखंलता का राज आ जाएगा।
कट्टर हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ एक मुखर और मजबूत आवाज देने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने एक बार फिर से देश और दुनिया को भयभीत कर दिया है। इससे एक बार फिर यह आशंका की पुष्ट हो गई कि निर्भीक पत्रकारिता करना खतरों से भरा है। पत्रकारों को न सिर्फ सत्ता माफियाओं से खतरा है बल्कि प्रभुत्वशाली बाहुबलियों के अंधभक्तों से भी उतना ही खतरा है।
ये हाल सिर्फ भारत का नहीं है, दुनिया भर के देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भयंकर खतरा मंडरा रहा है। बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वस्थ लोकतंत्र को सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में प्रेस के लिए बिना अड़चन और रोक के काम कर पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इंडेक्स के 180 देशों में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करनेवाला भारत पिछले साल के 133वें स्थान से 136वें स्थान पर आ गया है। रिपोर्ट ने देश में बढ़ते दक्षिणपंथ के दबाव और सुरक्षा की कमी को इस हालत के लिए जिम्मेदार बताया है।
कट्टर हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ एक मुखर और मजबूत आवाज देने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने एक बार फिर से देश और दुनिया को भयभीत कर दिया है। इससे एक बार फिर यह आशंका की पुष्ट हो गई कि निर्भीक पत्रकारिता करना खतरों से भरा है। पत्रकारों को न सिर्फ सत्ता माफियाओं से खतरा है बल्कि प्रभुत्वशाली बाहुबलियों के अंधभक्तों से भी उतना ही खतरा है। बलात्कारी बाबा राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद जिस तरीके स उग्र भीड़ ने इंडिया टुडे के पत्रकार का सिर फोड़ दिया, कई चैनलों की ओबी वैन खाक कर दी, एक का पैर तोड़ दिया। ये एक हद खतरनाक काल की तरफ इशारा कर रहा है। दुनियाभर में पत्रकारिता को लेकर हो रही चिंताओं और चुनौतियों के बीच पत्रकारिता के स्वरूप और चरित्र में भी बदलाव आया है। पत्रकारिता में इन खतरों से खेलने वाले जाबाज कलम के खिलाड़ी या कहें तो सिपाही को स्थानीय अफसरशाही या राजनीतिक नेताओं और गुंडों की गोली खानी पड़ती है। राजनीति, पूंजीवाद और अपराध के बीच चल रही मीडिया के चरित्र पर दिनों-दिन खतरा बढ़ता जा रहा हैं।
पत्रकारों पर हो रहे लगातार हमलों ने फ्रीडम ऑफ स्पीच और लोकतंत्र के चौथे खंभे के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। पत्रकारों की हत्या मामूली नहीं होती असल मे वो उस सच की हत्या होती है जिसे सफेदपोश भेड़िये को जानबूझ कर छुपाया जाता है। अब तक देखा जाये तो हजारों पत्रकारों पर जानलेवा हमले किये गये है। जिनमे से कई पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी गई। कई मामले भी हैं जिन्हें प्रकाश में ही नहीं आने दिया गया। बोल कि लब आजाद हैं तेरे, इन पंक्तियों को लिखने के बाद फैज साहब दुनिया से चल बसे। लेकिन आज इन पंक्तियों के लिहाज से एक खेमे को तो स्वतंत्रता है लेकिन दूसरे खेमे को लब की आजादी के नाम पर इतनी दफे मौत का डर दिखाया गया है कि उसकी नजरों में इन पंक्तियों का कोई अस्तित्व ही शेष नहीं रह गया है। भारत में 1992 से लेकर अब तक 19 जाबाज पत्रकारों की जुबान को भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध लड़ते वक्त हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दी गईं।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पत्रकारों की निर्मम हत्या के मामले में अब तक न तो किसी हत्यारें को सजा ही मिली है और न ही किसी न्याय की गुंजाइश ही की जा सकती है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने 42 पन्नों की एक रिपोर्ट पेश कर यह खुलासा किया था कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि 1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में कत्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है। आजतक टीवी चैनल के रिपोर्टर अक्षय सिंह मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की रिपोर्टिंग कर रहे थे। अक्षय और उनकी टीम मध्य प्रदेश में एक ऐसे व्यक्ति का इंटरव्यू कर लौट रहे थे जिसकी बेटी की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हुई थी। इसी रिपोर्ट के बाद उन्हें मार दिया गया। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में स्थानीय पत्रकार जागेंद्र सिंह की मृत्यु अभी तक पहेली बनी हुई है। जागेंद्र ने फेसबुक पर प्रदेश के एक मंत्री के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी और उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे। जिसके कारण उन्हें मार दिया गया। छत्तीसगढ़ में रायपुर में मेडिकल की लापरवाही के कुछ मामलों की खबर जुटाने में लगे उमेश राजपूत को उस समय मार दिया गया जब वो मामले को इंवेस्टीगेट कर रहे थे।
दुनिया भर में हाशिए पर है आजाद सहाफत-
ये हाल सिर्फ भारत का नहीं है, दुनिया भर के देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भयंकर खतरा मंडरा रहा है। बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वस्थ लोकतंत्र को सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में प्रेस के लिए बिना अड़चन और रोक के काम कर पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इंडेक्स के 180 देशों में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करनेवाला भारत पिछले साल के 133वें स्थान से 136वें स्थान पर आ गया है। रिपोर्ट ने देश में बढ़ते दक्षिणपंथ के दबाव और सुरक्षा की कमी को इस हालत के लिए जिम्मेदार बताया है। विश्वभर में कार्यरत पत्रकारों की स्वतंत्र संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स 2002 से निरंतर हर साल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को प्रकाशित कर रही है। विभिन्न देशों में मीडिया के कामकाज के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर इस इंडेक्स को तैयार किया जाता है। इस इंडेक्स को 180 देशों में पत्रकारों की स्वतंत्रता के आकलन पर तैयार किया जाता है और देशों को उसके अनुरूप रैंकिंग दी जाती है। इसमें विविधता, आजादी, वैधानिक व्यवस्था और पत्रकारों की सुरक्षा जैसे कारकों का अध्ययन किया जाता है।
इसको 20 भाषाओं में अनुदित कर 180 देशों के पत्रकारों, मीडिया वकीलों, स्कॉलरों और अन्य मीडिया विशेषज्ञों को भेजा जाता है जिन्हें संगठित द्वारा चयनित किया जाता है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स में कार्यरत जानकार पत्रकार मीडिया संस्थाओं के खिलाफ हुई हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं का विस्तृत ब्यौरा तैयार करते हैं। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में इरिट्रिया सबसे निचली पायदान पर है। तानाशाही शासन वाले इस पूर्व अफ्रीकी देश के खस्ताहाल की खबरें बाहर नहीं निकलतीं। कई पत्रकारों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा है। इरिट्रिया के बारे में निष्पक्ष जानकारी पाने के लिए पेरिस से चलने वाले रेडियो एरीना को एकलौता स्रोत माना जाता है। पूरी दुनिया की नजर से छिपे हुए उत्तरी कोरिया में भी प्रेस की आजादी नहीं पाई जाती। शासक किम जोंग उन की मशीनरी मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर पैनी नजर रखती है। लोगों को केवल सरकारी टीवी और रेडियो चैनल मिलते हैं और जो लोग अपनी राय जाहिर करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अक्सर राजनैतिक कैदी बना दिया जाता है।
चीन दुनिया में पत्रकारों और ब्लॉगरों के लिए सबसे बड़ी जेल है। किसी भी न्यूज कवरेज के पसंद न आने पर शासन संबंधित पक्ष के विरुद्ध कड़े कदम उठाता है। विदेशी पत्रकारों पर भी भारी दबाव है और कई बार उन्हें इंटरव्यू देने वाले चीनी लोगों को भी जेल में बंद कर दिया जाता है। सीरिया में अब तक ऐसे कई पत्रकारों को मौत की सजा दी जा चुकी है, जो असद शासन के खिलाफ हुई बगावत के समय सक्रिय थे। रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स ने सीरिया को कई सालों से प्रेस की आजादी का शत्रु घोषित किया हुआ है। वहां असद शासन के खिलाफ संघर्ष करने वाला अल-नुसरा फ्रंट और आईएस ने बदले की कार्रवाई में सीरिया के सरकारी मीडिया संस्थान के रिपोर्टरों पर हमले किए और कईयों को सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतारा। लोकतांत्रिक और बहुजातीय देश होने के बावजूद भारत प्रेस फ्रीडम की सूची में शामिल 180 देशों में 136वें नंबर पर है। उसके आस पास के देशों में होंडुरास, वेनेज्वेला और चाड जैसे देश हैं।
लोकतांत्रिक देशों में हालात बद से बदतर
इस रिपोर्ट में कहा गया कि लोकतांत्रिक देशों में हालात तो और खराब हैं। ये देश प्रेस की आजादी के मामले में लगातार पीछ हो रहे हैं। इसके अलावा इस गिरावट को रोकने की कोई कोशिश भी नहीं हो रही। पिछले साल जिन देशों में प्रेस की आजादी को लेकर हालत अच्छी थी, इस बार ऐसे देशों की संख्या में दो फीसदी तक की कमी आई है। भारत, रूस, चीन सहित 72 देशों में प्रेस की आजादी को लेकर हालात बहुत ही चिंताजनक है। ऐसे देशों में रूस, चीन और भारत शामिल हैं। इंडेक्स में सबसे नीचे खड़े उत्तर कोरिया में आबादी को अज्ञान और आतंक में रखने का सिलसिला जारी है। इन देशों में मीडिया को निशाना बनाने की घटनाएं अब आम बात हो गई हैं। सोशल मीडिया के इस समय में पत्रकारों पर साइबर हमलों की तादाद भी काफी बढ़ गई है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के महासचिव क्रिस्टोफ डेलॉयर का कहना है, 'जिस तरह लोकतांत्रिक देशों में मीडिया की आजादी सीमित होती जा रही है, वह उन सभी के लिए चिंताजनक है जो समझते हैं कि अगर मीडिया की स्वतंत्रता को सुरक्षित नहीं रखा गया, तो अन्य स्वतंत्रताओं के बचे रहने की उम्मीद करना भी मुश्किल है। वे पूछते हैं कि यह गिरावट हमें कहां तक लेकर जायेगी। एक साल के भीतर करीब दो-तिहाई देशों में स्थिति खराब हुई है, जबकि अनेक ऐसे देशों में जहां मीडिया की आजादी की स्थिति अच्छी या ठीक-ठाक थी, वहां दो फीसदी से अधिक की गिरावट आयी है। जहां ताकतवर नेताओं का दबदबा बढ़ा है, वहां मीडिया की आजादी में कमी आयी है। तुर्की इसका बड़ा उदाहरण है। तुर्की से सात पायदान ऊपर खड़ा व्लादिमीर पुतिन का रूस निचले श्रेणी के देशों में 148वें स्थान पर है।'
हम एक खतरनाक समाज की ओर बढ़ रहे हैं। पत्रकारिता को सत्ता और प्रशासन का वॉचडॉग कहा जाता है लेकिन अगर पत्रकारिता ही सत्ता के हाथों की कठपुतली बन जाएगी तो मनमानी बढ़ जाएगी, दुनिया भर में उच्छृखंलता का राज आ जाएगा। पत्रकार सरकार की नीतियों की आलोचना वाले किरदार से हटकर सरकार के माउथपीस बन जाएंगे। फिर तो लोकतंत्र का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। हर जगह लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही हो जाएगी। इसलिए जो लोग भी इस लेख को पढ़ रहे हैं, उनसे हमारी अपील है कि पत्रकारों की हत्या, उन पर हो रहे हमलों का मजाक मत बनाइए। ये केवल उन पर हो रहे हमले नहीं है, ये आप की अभिव्यक्ति पर हमले हो रहे हैं। आखें, कान खुले रखिए। आप पाइएगा हर एक पत्रकार की हत्या बड़ी गहरी साजिश है।
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