Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

मनोहर श्याम जोशी, साहित्य से लेकर सिनेमा तक

हम निर्लज्ज समाज में रहते हैं: जोशी

मनोहर श्याम जोशी, साहित्य से लेकर सिनेमा तक

Wednesday August 09, 2017 , 3 min Read

मनोहर श्याम जोशी को साहित्य और पत्रकारिता की बहुमुखी प्रतिभा का धनी माना जाता है। साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, धारावाहिक लेखक, विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, संपादक जोशी का आज जन्मदिन है। कभी एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा था कि हम एक निर्लज्ज समाज में रहते हैं, जिसमें हीरोइन सिंदूर लगाकर पैर भी छू लेती है और फिर स्विम सूट भी पहन लेती है। वर्ष 2006 में हृदयगति रुक जाने से दिल्ली में उनका निधन हो गया था।

image


मनोहर श्याम जोशी को साहित्य और पत्रकारिता की बहुमुखी प्रतिभा का धनी माना जाता है। एक समय ऐसा भी था, जब टेलीविजन धारावाहिकों में उनकी लिखी पटकथाएं लोकप्रियता के शीर्ष पायदान पर रहीं।

मनोहर श्याम जोशी हमारे वक्त के एक ऐसी साहित्यिक शख़्सियत रहे हैं, जिनकी प्रतिभा का विस्तार साहित्य, पत्रकारिता, टेलीविजन से सिनेमा जगत तक रहा है। आज उनका जन्मदिन है। जोशी को आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि का संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक माना जाता रहा है। दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- 'बुनियाद' 'नेताजी कहिन', 'मुंगेरी लाल के हसीं सपने', 'हम लोग' आदि के कारण वे भारत के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने धारावाहिक और फ़िल्म लेखन से संबंधित 'पटकथा-लेखन' नामक पुस्तक भी लिखी।

जोशी जी 'दिनमान' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के संपादक भी रहे। उन्होंने 'कसप' लिखते हुए आंचलिक कथाकारों की कथानक शैली इस्तेमाल करते हुए कुमाऊँनी हिन्दी में उस अंचल के जीवन का जीवन्त चित्रण किया है। कुमाऊँनी में कसप का अर्थ है ‘क्या जाने’। 'कुरु-कुरु स्वाहा' भी उनका लोकप्रिय उपन्यास है।

मनोहर श्याम जोशी को साहित्य और पत्रकारिता की बहुमुखी प्रतिभा का धनी माना जाता है। उन दिनों टेलीविजन धारावाहिकों में उनकी लिखी पटकथाएं लोकप्रियता शीर्ष पायदान पर रहीं। उसी तरह कुमाउंनी हो या अवधी, उनकी रचनाओं में भाषा के भी अलग-अलग मिजाज मिलते हैं। साथ ही बंबइया और उर्दू की भी मुहावरेदारी और 'प्रभु तुम कैसे किस्सागो' में कन्नड़ के शब्दों की बहुतायत। मनोहर श्याम जोशी जिन दिनो मुंबई में फ्रीलांसिंग कर रहे थे तो 'धर्मयुग' के संपादक धर्मवीर भारती ने उनसे 'लहरें और सीपियां' स्तंभ लिखवाना चाहा। 

'लहरें और सीपियां' मुंबई के उस देह व्यापार पर केंद्रित करके लिखना था, जो जुहू चौपाटी में उन दिनों फूल-फल रहा था। इस गलीज धंधे का अपना एक तंत्र था। चुनौती खोजी पत्रकारिता की थी। स्वभाव के विपरीत होते हुए भी मनोहर श्याम जोशी ने उस चैलेंज को सिर-माथे लिया।

जोशी ने साप्ताहिक हिंदुस्तान और वीकेंड रिव्यू का भी संपादन किया और विज्ञान से लेकर राजनीति तक सभी विषयों पर लिखा। उन्हें 2005 में साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया था। उनका मार्च 2006 में दिल्ली में हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया था। 

मनोहर श्याम जोशी का कहना था कि समाज में व्यंग्य की जगह ख़त्म हो गई है क्योंकि वास्तविकता व्यंग्य से बड़ी हो गई है। व्यंग्य उस समाज के लिए है, जहाँ लोग छोटे मुद्दों को लेकर भी संवेदनशील होते हैं। हम तो निर्लज्ज समाज में रहते हैं, यहाँ व्यंग्य से क्या फ़र्क पड़ेगा। टीवी सीरियलों की दशा से नाखुशी जताते हुए वह कहते थे कि टीवी तो फ़ैक्टरी हो गया है और लेखक से ऐसे परिवार की कहानी लिखवाई जाती है, जिसमें हीरोइन सिंदूर लगाकर पैर भी छू लेती है और फिर स्विम सूट भी पहन लेती है।

पढ़ें: वह लेखक जिसकी रचना से सहम गई थीं इंदिरा गाँधी