Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

भिखारियों की भीख मांगने की तरकीबें और उनका सालाना टर्नओवर जानकर हो जाएंगे हैरान

भिखारियों की सालाना कमाई जानकर हो जायेंगे हैरान...

भिखारियों की भीख मांगने की तरकीबें और उनका सालाना टर्नओवर जानकर हो जाएंगे हैरान

Tuesday February 27, 2018 , 8 min Read

भीख मांगने वालों का अपना कारपोरेट घराना है। दुनिया तेजी से बदल रही है जनाब, तो भिखारियों के सालाना दो सौ करोड़ के टर्नओवर पर हैरत मत करिए! भारत के संविधान में भीख मांगना अपराध है लेकिन बिहार में भीख मांगने का लाइसेंस मिलता है। दिल्ली के चौराहे हर स्टेट के भिखारियों से घिरे पड़े हैं। देश में लगभग चार लाख भिखारियों में 45 हजार बच्चे हैं। पुलिस रिकार्ड में हर साल लगभग इतने ही बच्चे गायब हो रहे हैं। भिखारियों के पैसे में पुलिस और सफेदपोशों के भी हिस्से होते हैं।

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


देश में 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे किसी तरह जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं। हर बड़े शहर के चौराहे भिखारियों से आबाद हैं। जितनी बार रेड सिग्नल, उतनी बार वाहनों के थमते ही बील की चींटियों की तरह फुर्ती से निकल आता है भिखारियों का झुंड।

मुंबई के स्लम क्षेत्र विरार का संभाजी प्रतिदिन कम से कम डेढ़ हजार कमा लेता है। इसके पास कुल चार मकान हैं। अच्छा-खासा कई बैंकों में बैलेंस है। मुंबई का ही हाज़ी रोज़ाना कम से कम दो हजार रुपए कमा लेता है।

मास्साब ने पूछा- बच्चों, भारत के उस शहर का नाम बताओ, जहां भिखारी न रहते हों? बच्चे चुप! जिस बात का बड़ों तक को पता नहीं, बच्चे कैसे बता दें, जबकि जवाब बड़ा सीधा-सा है, एक भी शहर ऐसा नहीं, जहां भिखारी न रहते हों। जिस देश में गंगा बहती है, उस देश में मेहनत-मजदूरी करने की क्या जरूरत, बैठ जाओ घाट किनारे, हथेली पर सिक्के बरसने लगेंगे। बिना लागत के सबसे मस्त प्रॉफिटेबल सेक्टर। यह जानकर किसी को भी हैरत हो सकती है कि हमारे देश में एक दर्जन से अधिक भिखारी करोड़पति हैं।

देश में 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे किसी तरह जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं। हर बड़े शहर के चौराहे भिखारियों से आबाद हैं। जितनी बार रेड सिग्नल, उतनी बार वाहनों के थमते ही बील की चींटियों की तरह फुर्ती से निकल आता है भिखारियों का झुंड। उनमें बड़े कम, बच्चे ज्यादा। हाथ फैलाए रिरियाते हुए। एक दिन में एक हजार बार रेड सिग्नल तो प्रति ट्रिप भीख के एक-एक रुपए से देर शाम तक उनकी झोली में आ जाते हैं एक हजार रुपए। फिर रात के अंधेरे में वे ठाट से ऑटो कर पहले ठेके पर पहुंचते हैं। गला तर करते हैं और पहुंच जाते हैं अपने ठाट-बाट वाले ठिकानों पर। भीख मांगने वाला जर्जर ड्रेस खूंटी पर टांगा और हो लिया मोहल्ले का इज्जतदार, सभ्य-भला मानुस। कहीं घूमने-फिरने जाना हुआ तो दरवाजे पर चार पहिया गाड़ी खड़ी है।

ये है हमारे देश के लखपति, करोड़पति भिखारियों का डेली रुटीन। उनके बैंक बैलेंस कोई जाने तो सही। उनमें कई तो फर्राटेदार अंग्रेजी में भी बात कर लेते हैं। उनके बच्चे ठाट से कॉन्वेन्ट स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बिना लागत के भीख मांगने का अच्छा खासा बिजनेस चल रहा है। देश के इन करोड़पतियों में है परेल (मुंबई) का भिखारी भरत जैन, जो दस हजार रुपए हर महीने देकर खुद तो किराए के मकान में रहता है और उसके अस्सी-अस्सी लाख के दो फ्लैट किराए पर उठे हुए हैं। वह रोजाना साठ-सत्तर हजार रुपए कमा लेता है। भांडुप में उसकी दो दुकानें हैं। एक ऐसा ही भिखारी मासु फिल्म स्टूडियो में अच्छे कपड़े उतारकर भिखारी के वेश में पहुंच जाता है परेल, उसके पास अपने फ्लैट के अलावा तीस लाख से अधिक की सम्पत्ति है।

मुंबई के स्लम क्षेत्र विरार का संभाजी प्रतिदिन कम से कम डेढ़ हजार कमा लेता है। इसके पास कुल चार मकान हैं। अच्छा-खासा कई बैंकों में बैलेंस है। मुंबई का ही हाज़ी रोज़ाना कम से कम दो हजार रुपए कमा लेता है। उसके पास एक कारखाना, खुद का मकान, लाखों के कई प्लॉट्स हैं। छारनी रोड के कृष्ण कुमार गईथी का अपना लाखों का बहुमंजिला मकान है। मुम्बई के ये भिखारी सालाना 180 करोड़ की भीख के कारोबारी हैं। थाणे इलाके में एक भिखारी के यहां से बोरियों में नोट होने का उस समय पता चला, जब उसके घर में आग लगी।

ऐसी बरक्कत की कुछ और जानकारियां हमें चौंकाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली के हर रेड लाइट पर भिखारियों का हुजूम सा जमा रहता है। इनकी रोजाना की इनकम हजारों में होती है। दिल्ली के भिखारियों ने महानगर में अपने-अपने क्षेत्र, मेट्रो पिलर तक आपस में बांट रखे हैं। इस महानगर में देश के हर प्रदेश के भिखारी रहते हैं। सरकार ने इनके लिए शेल्टर होम बनवा रखे हैं लेकिन वे उसमें नहीं रहना चाहते हैं। देहरादून (उत्तराखंड) में नशे की आड़ में लगभग दो सौ भिखारी रोजाना एक हजार रुपए तक कमा लेते हैं।

उत्तर प्रदेश के बरेली में साढ़े सात हजार भिखारियों का सालाना टर्नओवर करोड़ों में है। मेरठ में तीन सौ भिखारियों का संगठित गिरोह सालाना 36 करोड़ रुपए कमा रहा है। आगरा में ऑर्गनाइज्ड तरीके से आबू उल्लाह दरगाह के पास एक महिला किराए पर दुधमुंहे बच्चों के साथ भिखारियों की सप्लाई करती है। इलाहाबाद रेलवे स्टेशन स्थित मजार के पास भीख मांगने के लिए किराए पर बच्चे उपलब्ध कराए जाते हैं। गोरखपुर के सरकारी रिकार्ड में दर्ज 165 भिखारियों की रकम में रेलवे जंक्शन की पुलिस को भी हिस्सा मिलता है। कानपुर में भिखारियों का कॉरपोरेट घराना है, जिसे पंडिताइन चाची नाम से मशहूर एक विधवा वृद्धा चलाती है। इसकी गैंग के भिखारी लूटपाट भी करते रहते हैं। यह भीख के रूपए ब्याज पर चलाती है।

यूपी के ही सीतापुर में भिखारियों के गैंग का सरगना व्यवस्थित बिजनेस के रूप में ट्रेनों में बच्चों से भीख मंगवाता है। वाराणसी में भीख के लिए घाटों की बोली लगती है। पश्चिम बंगाल का आनंद वृंदावन (मथुरा) में हर महीने भीख से लगभग तीस हजार रुपए कमा लेता है। इस तीर्थ नगरी के भिखारियों की सालाना इनकम लाखों में है। अब बिहार-झारखंड की दास्तान जानिए। पटना में कुछ महिलाएं किराए पर दुधमुंहे बच्चे गोद में लेकर भीख मांगती हैं। भारत के संविधान में भीख माँगना अपराध बताया गया है लेकिन इन्हें भीख मांगने की राज्य सरकार से बाकायदा मान्यता मिली हुई है। ऐसे ही भिखारियों में हैं कृष्ण कुमार गीते, पटना की भिखारिन सार्वितीया।

भीख के पैसे से विदेश यात्रा कर चुकी सर्वितिया सालाना एलआईसी के 36 हजार रुपए प्रीमियम चुकाती है। जमशेदपुर के प्रोफेशनल भिखारियों के परिवार का हर सदस्य भीख माँगता है। रांची में एक महिला चार गिरोहों में डेढ़ दर्जन भिखारी बच्चों से ट्रेनों में भीख मंगवाती है। कोलकाता के लक्ष्मी दास का अच्छा खासा बैंक बैलेंस है। पंजाब के हाजीपुर क्षेत्र में लम्बे समय से प्रवासी महिलाएं भीख मांगती हैं। इनमें से कई एड्स ग्रस्त भिखारियों को देह व्यापार के धंधे में लिप्त पाया गया है। इसी तरह तामिलनाडु, केरल, ओड़िशा, कोलकाता, लखनऊ में भी भिखारियों के संगठित गिरोह सक्रिय हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल में आठ हजार, उत्तरप्रदेश में सात हजार, आंध्रप्रदेश में साढ़े तीन हजार, बिहार में 30 हजार, मध्यप्रदेश में 28 हजार, असम में 22 हजार भिखारी हैं।

एक सर्वे के मुताबिक वसुधैव कुटम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश देने वाले हमारे देश में लगभग चार लाख भिखारियों में से लगभगह 40 हजार से ज्यादा बच्चे हैं। इक्कीस फीसदी 12वीं पास हैं। कई बी-टेक हैं। शनिवार और रविवार इन भिखारियों का खास दिन होता है। इस दिन भीख की जबर्दस्त बरक्कत होती है। इन भिखारियों को पहचान के डर से फोटो खिंचाना सख्त मना है। भिखारी बच्चों को समाज कल्याण विभाग की तरफ से चाइल्ड होम में डाला जाता है और ये हर बार वहां से भाग खड़े होते हैं। अपंग दिखने वाले कई भिखारियों के पैस सलामत पाए गए हैं। पता चला है कि अक्सर कई बड़े भिखारी न देने पर पैसे छीन लेते हैं। भीख न देने पर गाली-गलौज करने लगते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर भिखारी प्रतिदिन कम से कम एक हजार रुपए कमा लेते हैं। शनिवार, रविवार अथवा त्योहार के मौकों पर यह कमाई दोगुनी-तीनगुनी तक हो जाती है। इनकी भीख में सफेदपोशों, पुलिस वालों का भी हिस्सा होता है। इनका कोई ईमान-धर्म नहीं होता है। मुस्लिम बहुल ठिकानों पर मुस्लिम हुलिया में, हिंदू बहुल स्थलों पर साधु-संन्यासियों वाली वेशभूषा धारण कर लेते हैं। उसी के अनुरूप बोलचाल, भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं। 

कई भिखारी उन घरों पर निशाना साधे रहते हैं, जिनके पुरुष ड्यूटी पर चले जाते हैं। ऐसे घरों की महिलाओं पर वे इमोशनल अत्याचार करते हैं। भिखारियों के गिरोहों में सक्रिय तमाम बच्चे अपहृत किए हुए होते हैं। एक पुलिस रिकार्ड के मुताबिक हर साल लगभग चालीस-पैंतालीस हजार बच्चे गायब हो रहे हैं। लगभग 10 लाख बच्चों के बिछुड़ने की सूचनाएं मिलती रहती हैं। बताया जाता है कि उनमें से तमाम बच्चे भिखारी गैंगमैनों के चंगुल में खींच लिए जाते हैं।

यह भी पढ़ें: मिलिए 98 साल की उम्र में पोस्ट ग्रैजुएट करने वाले पटना के इस शख्स से