कभी मछली पकड़ने से होती थी दिन की शुरुआत, अब वर्ल्ड चैम्पियनशिप में जीता सिल्वर
मनीषा एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं और उनके पिता कैलाश कीर भोपाल झील में मछलियां पकड़ने का काम करते थे। मनीषा भी उनके काम में हाथ बंटाती थीं।
दक्षिण कोरिया में चल रही इस प्रतियोगिता में मनीषा ने जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी जरूर की, लेकिन उन्हें दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। मनीषा ने ओलंपियन मनशेर सिंह के निर्देशन में शूटिंग की ट्रेनिंग ली है।
भोपाल की रहने वाली 19 साल की मनीषा कीर ने साउथ कोरिया में चल रहे इंटरनेशल जूनियर शूटिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। यह प्रतियोगिता इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन द्वारा कराई जाती है। इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे मनीषा को काफी संघर्ष पड़ा। दरअसल मनीषा एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं और उनके पिता कैलाश कीर भोपाल झील में मछलियां पकड़ने का काम करते थे। मनीषा भी उनके काम में हाथ बंटाती थीं।
मनीषा के छह भाई बहन हैं। इस हालत में शूटिंग करने की कल्पना करना तो बिलकुल आसान नहीं था। दक्षिण कोरिया में चल रही इस प्रतियोगिता में मनीषा ने जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी जरूर की, लेकिन उन्हें दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। मनीषा ने ओलंपियन मनशेर सिंह के निर्देशन में शूटिंग की ट्रेनिंग ली है।
एनबीटी के मुताबिक मनीषा के दिन की शुरुआत भोपाल झील में मछलियां पकड़ने में पिता की मदद करने से शुरू होती थी। उनके पिता कैलाश कीर मछलियों को बाजार में बेचते और परिवार का पेट पाला करते। मनीषा के दिन भी पिता की मदद में ही गुजर रहे थे। मनीषा की बड़ी बहन सोनिया एक दिन उन्हें मध्य प्रदेश शूटिंग अकेडमी ले गईं जहां शॉटगन ट्रायल हो रहे थे। मनीषा के निशाने का कमाल यहां ओलिंपियन मनशेर सिंह ने देखा जो अकेडमी के मुख्य कोच थे। उन्होंने मनीषा को एक लक्ष्य दिया जिसे मनीषा ने एक पेशेवर शूटर की तरह राइफल से हिट कर दिया।
भोपाल के बाहरी इलाके गोरेगांव में रहने वाली मनीषा ने मई 2016 में फिनलैंड में जूनियर शॉटगन कप में गोल्ड जीता। वह बताती हैं, 'मैं 2013 में एक नए स्टेडियम में ट्रायल के लिए गई और सिलेक्ट हो गई। मैंने वहां ट्रेनिंग शुरू कर दी और इसके बाद मैंने और कुछ अन्य शूटर्स ने नैशनल इवेंट के लिए क्लॉलिफाइ किया। हालांकि मैं भारतीय टीम में जगह नहीं बना सकी। हालांकि मैंने अगली बार और कड़ी मेहनत की। मैंने पूरे दिन अकेडमी में अभ्यास किया। इसका फायदा हुआ और मैं तीसरी रैंक के साथ नैशनल टीम में चुन ली गई। '
यह भी पढ़ें: बच्चों ने बंद किया स्कूल जाना तो टीचर ने बच्चों के घर पर शुरू की क्लास