विकलांगों के कौशल को निखार, यूथ 4 जॉब्स खोल रहा है बड़ी कंपनियों में रोजगार के दरवाजे
मल्लिका रेड्डी जब 9 महीने की थी तब उन्हें पोलिया हो गया. मल्लिका के साथ साथ उसकी परेशानियों भी बड़ी होने लगीं. पोलिया की मारी मल्लिका और उसके परिवार पर एक के बाद एक मुसीबतें आती गईं. पैसे की तंगी, पिता को लकवा मारने और मां को कैंसर हो जाने पर परिवार और तबाह हुआ. लेकिन कहते हैं जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव को दरकिनार करते हुए आज मल्लिका अपने और अपने परिवार का सिर गर्व से ऊंचा कर रही हैं. मल्लिका भले ही शरीर से विकलांग हैं लेकिन उसके सपने विकलांग नहीं थे. वह शारीरिक रूप से जरूर विकलांग थी लेकिन उसके हौसले और इरादे उसे जिंदगी में कुछ कर गुजरने की हिम्मत देते रहे. शारीरिक रूप से फिट इंसान आम जिंदगी की परेशानी को तो जैसे तैसे झेल लेता है लेकिन वही परेशानियां किसी विकलांग के लिए दोगुनी हो जाती है. मल्लिका ने जिंदगी में कभी हार नहीं मानी. पढ़ाई में ईमानदारी से मेहनत की और अपने अंदर छिपे कौशल को निखारा और विकलांगता के बावजूद एक सफल इंसान बन पाई. मल्लिका आज एक ट्रेनर के रूप में महीने 12 हजार रुपये कमा रही है. आंध्र प्रदेश में वह सरकारी प्रोजेक्ट ईजीएमएम में बतौर ट्रेनर काम करती हैं. मल्लिका और ना जाने कितने विकलांगों के लिए यूथ 4 जॉब्स उम्मीद की किरण की तरह काम कर रहा है. यूथ 4 जॉब्स बाजार से जुड़ी मांग को नजर में रखते हुए उनके कौशल का विकास करता है जिसके बाद समाज के गरीब और निचले तबके के विकलांग युवाओं को आम आवेदकों की तरह अवसर मिलते हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 2.68 करोड़ विकलांग हैं और जो देश की कुल जनसंख्या के 2.21 प्रतिशत है. इनमें 41 लाख युवा शामिल है जिनकी उम्र 19 से 29 साल के बीच है. इसमें दो फीसदी ही पढ़े लिखे हैं और सिर्फ एक फीसदी रोजगार से जुड़ा है. क्या इतनी बड़ी आबादी को सिर्फ इसलिए अवसर नहीं मिल सकता है क्योंकि वे प्रशिक्षित या फिर रोजगार के लिए फिट नहीं है. ऐसा नहीं है, इसी सवाल का जवाब है यूथ फॉर जॉब्स. यह एक गैर लाभकारी संगठन है. तीन साल पहले इस संगठन ने विकलांग व्यक्तियों के कौशल विकास योजना की शुरुआत की. यूथ 4 जॉब्स की पहल के कारण आज हजारों विकलांग युवाओं के सपने पूरे हो रहे हैं. यूथ 4 जॉब्स विकलांग युवाओं के कौशल विकास करता है और देश की बड़ी कंपनियों में नौकरी दिलवाने में मदद करता है. यूथ 4 जॉब्स का रोजगार कार्यक्रम इस तरह से तैयार किया गया है कि इसकी ट्रेनिंग के बाद रोजगार मिलने के मौके अधिक हो जाते हैं. यूथ 4 जॉब्स राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को विकलांग लेकिन प्रशिक्षित युवकों को रोजगार देने के लिए संवेदनशील बनाता है. मिलिए यूथ 4 जॉब्स की मीरा शिनॉय से जिन्होंने विकलांगों के भीतर रोजगार को लेकर भरपूर संभावनाओं को महसूस किया और इस गैर लाभकारी संगठन की शुरुआत की. यूथ 4 जॉब्स ऐसे युवाओं के कौशल का विकास करता है जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं और कम पढ़े लिखे होते हैं. अलग अलग तरह के विकलांगों को नजर में रखते हुए संगठन ने ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया है. पिछले तीन सालों में इस संगठन ने लंबा सफर तय किया है. जहां शुरुआत में इसका एक केंद्र हुआ करता था अब इसके 18 प्रशिक्षण केंद्र हैं और जो 9 राज्यों में फैले हैं. यूथ 4 जॉब्स की संस्थापक मीरा शेनॉय इसके विजन के बारे में कहती हैं, ‘यूथ 4 जॉब्स का मकसद विकलांग लोगों की नौकरी में भर्ती को मुख्य धारा से जोड़ना है. इसके लिए हम दो तरीके से काम करते हैं. यूथ 4 जॉब्स ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना करता है. जो उन्हें प्रोत्साहित करता है, ट्रेनिंग देता है और उन्हें संगठित क्षेत्र की नौकरियां दिलाता है. दूसरे स्तर पर हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी करके उनकी भागीदारी को शामिल करने के लिए स्पष्ट रोडमैप तैयार करने में मदद करते हैं.’
यूथ 4 जॉब्स की शुरुआती मुश्किलों के बारे में शेनॉय कहती हैं, ‘शुरुआती दिन तो बहुत संघर्ष भरे थे. वह वक्त आसान नहीं था...सभी ने कहा यह मुमकिन नहीं है. परिवार, युवाओं और कंपनियों की सोच एक समान थी. अभिभावकों को लगता था कि उनके बच्चे किसी काम के लायक नहीं और आत्मनिर्भर नहीं बन सकते तो वहीं युवाओं में आत्म सम्मान का स्तर बेहद कम था. वहीं कंपनियां विकलांगों की क्षमताओं के बारे में अनभिज्ञ थी. ‘‘नहीं कर सकते हैं, को कर सकते हैं’’, में बदलने में हमें बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ी. हमें, अपने हितधारकों के साथ कड़ी मेहनत करनी पड़ी.’
9 राज्यों में 18 ट्रेनिंग सेंटर
पहले साल यूथ 4 जॉब्स को वाकई बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. शेनॉय आगे कहती हैं, ‘शुरू में हम एक ऐसा ढांचा तैयार करना चाह रहे थे जिसे बाहरी फंडिंग की जरूरत न पड़े. शुरुआती फंडिंग हमें वाधवानी फाउंडेशन ने की. जब हमारा ढांचा तैयार हो गया तो हमारी मदद एक्सिस बैंक फाउंडेशन ने की. बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर शिखा शर्मा ने हमारे कार्यक्रम की देशव्यापी शुरुआत की. एक्सिस बैंक की मदद से हमने देशभर में विकलांगों के कौशल को निखारने के लिए केंद्र खोले. इसके अलावा हमें टेक महिंद्रा फाउंडेशन और युनाइटेड वे चैन्नई से वित्तीय सहायता मिलती है.’’
संस्था ने अलग अलग तरह के विकलांगता के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम तैयार किया है. शेनॉय बताती हैं, ‘उदाहरण के लिए जो मूक बधिर हैं उन्हें खास तरह के ट्रेनर की जरूरत होती है. पहला कदम ट्रेनिंग सेंटर में युवाओं को इकट्ठा करना होता है. क्योंकि युवा बिखरे हुए हैं, हम गैर लाभकारी संगठनों, विकलांग संगठनों, सरकारी और ग्रामीण संगठनों के साथ मिलकर काम करते हैं. हमारे ट्रेनिंग सेंटर में अंग्रेजी संवाद का सामान्य मॉड्यूल है, कंप्यूटर, जीवन और सॉफ्ट स्किल्स पर काम किया जाता है और उसके बाद उद्योग विशेष कौशल पर ध्यान दिया जाता है फिर जाकर उन्हें ऑन जॉब ट्रेनिंग दी जाती है. युवाओं को उनकी शैक्षिक स्थिति और आकांक्षाओं के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाती है. पढ़े लिखे युवाओं को सर्विस सेक्टर में नौकरी मिलती है तो वहीं कम पढ़े लिखे को उत्पादन के क्षेत्र में रोजगार मिलता है.’
7000 युवकों को ट्रेनिंग
अब तक यूथ 4 जॉब्स सात हजार युवकों को ट्रेनिंग दे चुका है. इनमें से 65 फीसदी संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं. ट्रेनिंग पाने वालों में 40 फीसदी लड़कियां शामिल हैं. यूथ 4 जॉब्स 85 फीसदी ऐसे लोगों को ट्रेनिंग देता है जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं.
भविष्य के बारे में शेनॉय कहती हैं हमारे इस मॉडल ने देश को साबित किया है कि विकलांगता के बावजूद युवा संगठित क्षेत्र में नियमित नौकरी पा सकते हैं. इसके अलावा वे ऐसा काम भी कर सकते हैं जिसमें वे सीधे ग्राहक से संपर्क कर सकते हैं. उदाहरण के लिए किसी स्टोर में कैशियर का काम. हम भविष्य में अपने ट्रेनिंग सेंटर को सभी राज्यों में खोलना चाहते हैं जिससे अंत में नागरिकों और कॉरपोरेट घरानों में बड़े बदलाव देखने को मिलेगा, जो यह समझ पाएंगे कि विकलांग बहुमूल्य संसाधन है ना कि बोझ. ऐसा होने से विकलांग युवा कार्यबल की मुख्यधारा से जुड़ पाएगा.’ यूथ 4 जॉब्स अब तक चार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुका है.
शेनॉय दावा करती हैं कि जिन कंपनियों में उनके केंद्र से प्रशिक्षित युवा काम कर रहे हैं वहां उत्पादन में 15 फीसदी तक का इजाफा हुआ है.
यूथ 4 जॉब्स की वेबसाइट www.youth4jobs.org