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आधी आबादी पा कर रहेगी पूरी आज़ादी: उर्मिला "उर्मि"

शारीरिक हमले तो उस पर सदियों से होते रहे हैं, अब शाब्दिक हमले भी उसे झेलने पड रहे हैं।

आधी आबादी पा कर रहेगी पूरी आज़ादी: उर्मिला "उर्मि"

Wednesday March 08, 2017 , 3 min Read

"स्त्री और आज़ादी ! ये शब्द एक प्रश्नचिन्ह की तरह किसी न किसी रूप में हमारे सामने उपस्थित रहता है। कभी निंदा करता, सीमारेखा चिन्हित करता हुआ और कभी अधिकारों की मांग के रूप में।"

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"युग बदला! समाज और सभ्यताएं बदलीं! लेकिन पुरुषों द्वारा बनाये गए इस समाज के सामने ये प्रश्न हर युग में मुंह बाए हुए खड़ा है, कि क्या स्त्रियों को आज़ादी देनी चाहिए? यदि हां, तो कितनी और कैसे?"

स्त्रियों की आज़ादी की लड़ाई के चिरन्तन प्रश्न को पीछे छोड़कर आज की स्त्री चल पड़ी है अपने हिस्से का आसमान तलाश करने और ये आसमान उसे दिया है सोशल मीडिया ने। जहां सकुचाते झिझकते उसने पहला कदम रखा और धीरे-धीरे अपने पाँव मज़बूत ज़मीन पर टिका दिए। आज वो इसके माध्यम से अपने जेहन की खिड़कियाँ खोलकर न सिर्फ ताज़ी हवा में साँस ले रही है, बल्कि अपने विचारों को खुलकर अभिव्यक्त कर, लोगों को अपने ढंग से सोचने पर विवश कर रही है। यहां तक कि जिन विषयों को उसे सुनने और सोचने का भी अधिकार नहीं था उन विषयों पर बेझिझक बात कर रही है।

इन्हीं सबके बीच एक वर्ग ऐसा भी है, जो जो स्त्रियों के इस तरह खुल कर बोलने को पचा नहीं पा रहा है, लेकिन युवा स्त्रियों को इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। एक बार जिसे जीने की लत पड़ जाए, तो वो फिर उसे कैसे छोड़ेगी। आज़ादी और आवारगी में जो अदभुत नशा है उसका स्वाद चख लिया है आज की लड़कियों ने और वो अब इसे छोड़ नही सकतीं, पिंजरा अचानक खुल जाने पर उसमें से उड़ जाने वाला पंछी भला कब वापस आया है!

"शारीरिक हमले तो उस पर सदियों से होते रहे हैं, अब शाब्दिक हमले भी उसे झेलने पड रहे हैं।"

स्त्री की स्वतंत्रता, उसकी बेबाकी, उसकी अभिव्यक्ति को बाधित करने के लिए सबसे बड़ी चोट उसके चरित्र पर की जाती है, जैसे चरित्र कोई टिमटिमाता दिया है जो फूंक मारते ही बुझ जाएगा। बहुत-सी स्त्रियां इस बदनामी से डर जाती हैं। दरअसल वे डरती नहीं बल्कि हमारी सामाजिक व्यवस्था उन्हें डरा देती है। आखिर परिवार और समाज की इज़्ज़त की ज़िम्मेदारी तो उनके ही कन्धों पर है न! लेकिन, अब उसे भी उतारकर फेंकने की तैयारी हो चली है उनकी तेज़, धारदार अभिव्यक्ति के रूप में।

सोशल मीडिया रूपी कैनवास बिखरा पड़ा है जिसे अपनी तूलिकाओं से ये बड़ी कुशलता से चित्रित कर अपना लोहा मनवाने लगी हैं। जिस अनुभव को उन्होंने अपने हृदय में संजो रखा था उसे पूरी दुनिया में बाँट रही हैं। हालांकि राह आसान नहीं है, फिर भी आधी आबादी अपनी पूरी आज़ादी पाने में लगी हुई है और सोशल मीडिया के सहयोग से उसकी युगों-युगों की प्रतीक्षा का अंत अवश्य होगा।

-उर्मिला "उर्मि" (कवयित्री/लेखिका)