Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

साहित्य, सिनेमा से सियासत तक विवादों में कुमार विश्वास

साहित्य, सिनेमा से सियासत तक विवादों में कुमार विश्वास

Friday September 08, 2017 , 7 min Read

 वह हिन्दी कवि सम्मेलनों के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं। उन्होंने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। 

डॉ. कुमार विश्वास

डॉ. कुमार विश्वास


पंद्रह साल की किशोर उम्र से ही कविता पाठ करने वाले डॉ. कुमार विश्वास ने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 में शुरू किया था। तब से अब तक वह शिक्षक कम, कवि के रूप में ज्यादा चर्चित हैं।

कुमार विश्वास ने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। कुमार विश्वास की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

साहित्य, सिनेमा से सियासत तक कवि-नेता डॉ. कुमार विश्वास का विवादों से बड़ा पुराना नाता रहा है। कविसम्मेलनों का मंच हो राजनीति में अन्ना हजारे से अरविंद केजरीवाल तक से लगाव-विलगाव, सदी के नायक अमिताभ बच्चन का समर्थन-विरोध हो या चर्चित अभिनेत्री कंगना रानोट की जमा-जुबानी तरफदारी, ट्विटर, फेसबुक, मीडिया, सोशल मीडिया, सब जगह आजकल छाए हुए कुमार अक्सर शब्दों और बयानों के झमेले में झूलते रहते हैं।

दुनिया जानती है कि डॉ. कुमार विश्वास आजकल मंचों के सबसे महंगे कवि हैं। इन दिनो वह कंगना रानोट की तरफदारी में इस ट्वीट पर सुर्खियों में हैं कि- 'दर्द में वह शक्ति है जो मनुष्य को दृष्टा बना देती है', तो कभी हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियों का 'तर्पण' नाम से अपनी आवाज में वीडियो अपलोड कर लेने के बाद जब उन्हें अमिताभ बच्चन से चेतावनी मिलती है कि -'ये कॉपीराइट का उल्‍लंघन है। हमारा लीगल डिपार्टमेंट इस बात की सुध लेगा', वह दोटूक जवाब ट्विट कर देते हैं - 'सभी कवियों से मुझे इसके लिए सराहना मिली, लेकिन आपसे नोटिस मिला। बाबूजी को श्रद्धांजलि का वीडियो डिलीट कर रहा हूं। साथ ही आपके द्वारा मांगने पर 32 रुपये भेज रहा हूं, जो इससे कमाए हैं। प्रणाम'।

अमिताभ बच्चन ही क्या, वह तो अपने पार्टी के सदर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक से ट्विट-घमासान करते रहते हैं। जन-भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज होते रहे हैं। नरेंद्र मोदी की तारीफ के कारण उनकी पार्टी निष्ठाओं पर भी सवाल उठते रहे हैं। वह आम आदमी पार्टी के दूसरे सबसे विवादित नेता माने जाते हैं, जबकि वह सीएम अरविंद केजरीवाल के संकटमोचक और करीबी सहयोगी भी बने रहते हैं। वह दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बचपन के दोस्त हैं। पंद्रह साल की किशोर उम्र से ही कविता पाठ करने वाले डॉ. कुमार विश्वास ने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 में शुरू किया था। तब से अब तक वह शिक्षक कम, कवि के रूप में ज्यादा चर्चित हैं।

image


इसके साथ ही वह हिन्दी कवि सम्मेलनों के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं। उन्होंने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। कुमार विश्वास की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- 'इक पगली लड़की के बिन' और 'कोई दीवाना कहता है'। धर्मवीर भारती ने उनको मौजूदा पीढ़ी का सबसे सम्भावनाशील कवि कहा था। गीतकार 'नीरज' उन्हें 'निशा-नियामक' की संज्ञा दे चुके हैं। मशहूर हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र शर्मा उन्हें इस पीढ़ी का एकमात्र आई एस ओ कवि कहते हैं। वह हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं। उन्होंने आदित्य दत्त की फ़िल्म 'चाय-गरम' में अभिनय भी किया है। समय-समय पर वह साहित्यिक-सामाजिक-राजनीतिक मंचों से सम्मानित होते रहते हैं।

वह अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। स्कूली शिक्षा में थ्रो आउट फर्स्ट क्लास रहे हैं। वह छात्र जीवन से ही गाने-बजाने में भी अव्व्ल रहे हैं। उनको बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा है। पढ़ाई के वक्त अक्सर क्लास बंक कर पिक्चर देखने चले जाते थे। पहली बार अपने भाई विकास शर्मा की पैरोकारी पर उन्नीस सौ अस्सी के दशक में कवि हरिओम पंवार के संचालन में मंच पर चढ़े और 101 रुपये इनाम से नवाजे गए थे। दिल्ली में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन के मंच से कविताएं सुनाकर जन जागरण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वहां भी वह उस वक्त विवादित बन गए, जब उन्होंने अक्टूबर 2011 में चिट्टी लिख कर टीम अन्ना को भंग करने की मांग उठा दी। जब केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया तो उससे सबसे पहले कुमार विश्वास ही किनाराकशी कर विवादों में आ गए। वह कहते हैं- ‘राजनीति के लिए जैसा मस्तिष्क चाहिए, मैं वैसा व्यक्ति नही हूं। मैं कवि हूं। दिल का आदमी हूं। दिल से सोचता हूं। भावनाओं का आदमी हूं। जो मुंह में आता है, बोल देता हूं’-

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!

मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है ! कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!

यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं ! जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता ! यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!

मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले ! जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा! हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!

अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का! मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

कुमार विश्वास अगस्त 2011 में जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य रहे। वह इस वक्त भी दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी के साथ हैं। उन्होंने अमेठी से लोकसभा का पिछला चुनाव भी लड़ा मगर हार गए थे। सियासत और साहित्य में विवादों से नातेदारी को लेकर वह कहते हैं- मेरी पार्टी भी जानती है कि मैं राजनीति नहीं कर सकता, इसकी जगह मैं कविता करता हूं। कविता और राजनीति के बीच संतुलन बनाना कठिन है। अगर मैं सुबह एक शेर ट्वीट करूं तो शाम में खबर बनेगी कि विश्वास और अरविंद केजरीवाल के बीच मतभेद बढ़े।

image


कुमार विश्वास कहते हैं- ‘निगाह उट्ठे तो सुबह हो, झुके तो शाम हो जाए. अगर तू मुस्कुरा भर दे तो कत्लेआम हो जाए। देखो, कत्लेआम पर तालियां बज गईं। मीडिया वाले काट के कह सकते हैं कि कत्लेआम की बात हुई तो मोदी मुस्कुराए। निगाह उठे तो सुबह हो। वो तो जुगाड़ में ही बैठे हैं कि ऐसा कुछ हो तो हम काटें। मैं बता रहा हूं आपको कि मोदी जी आपका भविष्य उज्जवल है। आप दिल्ली में तो बैठोगे ही। वो तो मुझे पता है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कवि की जिह्वा पर 24 घंटे में एक बार सरस्वती बैठती है। शायद ईश्वर करे, मां करे, इस क्षण मेरी जिह्वा पर सरस्वती बैठी हो।’ यद्यपि बाद में वह सफाई देते हैं- ‘वर्ष 2009 में नरेंद्र मोदी के कवि सम्मेलन में उनकी तारीफ की। वह एक शुभ अवसर था। तब तक राजनीति में कोई बैटरमैंट था नहीं। मैं स्वीकार करता हूं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह को सांसद बनाने में एक वोट मेरा भी रहा है।’

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर, फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनाएं हैं। शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर, फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनाएं हैं। हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों, तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ, योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर, जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर, फिर भी तुम्हारे कंठ, मेरी वेदनाएँ हैं।

यह भी पढ़ें: साहित्य की चोरी पर लगाम लगाएगा 'रेग्यूलेशन 2017'