17 साल की लड़की ने लेह में लाइब्रेरी बनवाने के लिए इकट्ठे किए 10 लाख रुपए
हम में से कई लोग सोचते हैं कि हम आत्मनिर्भर हैं। हम सभी अपने रोज़मर्रा के फैसले खुद लेते हैं। क्या खाना है, कहां जाना है, क्या करना है और भी बहुत कुछ। यही सोच हमें रोजमर्रा के काम करने का हौसला भी देती है। पर कुछ लोग सच में आत्मनिर्भर हैं, जो अपने साथ-साथ दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाने की सोच रखते हैं। उन्हीं में से एक है 17 साल की अनन्या सलूजा, जो मीलों का सफर तय करके जाती हैं सिर्फ कुछ चेहरों में मुस्कान लाने के लिए। अनन्या उन इंसानों में से हैं, जो अपने से पहले दुनिया और उसमें रह रहे लोगों के बारे में सोचती हैं।
अनन्या 11वीं क्लास की स्टूडेंट हैं और गुरुग्राम के द श्रीराम स्कूल में पढ़ती हैं। पिछले तीन साल की गर्मियों की छुट्टियां अनन्या ने लेह में ही बितायी हैं। अनन्या ने बच्चों को पढ़ाने के अलावा 10 लाख तक की धनराशि इकट्ठी कर ली है, ताकि लेह में लाइब्रेरी और खेलने के लिए एक मैदान बनवाया जा सके।
अनन्या महज 11वीं की छात्रा हैं। अपने परीक्षा से पहले के महत्वपूर्ण समय को वो जम्मू कश्मीर के सुविधा से वंचित बच्चों को पढ़ाने में बिताती हैं। अनन्या दो महीने के वॉलंटियर प्रोग्राम में बच्चों तक अच्छी से अच्छी शिक्षा पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं। अनन्या का मानना है, कि बच्चे उनसे नहीं बल्कि बच्चों से वो बहुत कुछ सिखती हैं। इस प्रोग्राम के ज़रिए वो जान पायी हैं कि कैसे लोग रोज़मर्रा की समस्यों का सामना करते हैं।
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अनन्या कहती हैं 'टैबलेट हमारे लिए रोज़मर्रा की चीजों में से एक है पर इन बच्चों ने मुश्किल से ही कम्प्यूटर को देखा है। उनके लिए टैबलेट एक जादुई स्क्रीन जैसा है जो बिना तारों के काम करता है। हमारे रहन-सहन, खाना-पान में भिन्नता के कारण मुझे उनके साथ घूलने-मिलने में थोड़ा वक्त लगा। कुछ समय बीत जाने के बाद इन सभी भिन्नता के बावजूद हमारे बीच मज़बूत रिश्ता बन गया है जो मुझे उनसे बांधे रखता है।' अनन्या जो एक छात्रा है और गुरुग्राम के द श्रीराम स्कूल में पढ़ती हैं। पिछले तीन साल की गर्मियों की छुट्टियां अनन्या ने लेह में ही बितायी हैं। अनन्या ने बच्चों को पढ़ाने के अलावा 10 लाख तक की धनराशि इकट्ठी कर ली है, ताकि लेह में लाइब्रेरी और खेलने के लिए मैदान बनवाया जा सके।
यह सब दो साल पहले शुरू हुआ जब अनन्या के स्कूल ने एक कार्यक्रम शुरू किया जिसमें उन बच्चों तक शिक्षा पहुंचे का लक्ष्य था, जो इस सुविधा से वंचित है। कार्यक्रम तो खत्म हो गया पर फिर भी अनन्या ने इस काम को जारी रखने की ठानी।
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इन्टरव्यू में अनन्या ने बताया की 'ये अनुभव पूरी तरह से बदल देने वाला था। कार्यक्रम के दौरान में उन लड़कियों के बहुत करीब आ गई जिन्हें मैं लेह में जानती थी। अब मैं पीछे नहीं हट सकती।' साथ ही अनन्या ये भी बताती हैं, कि अपने दोस्तों से बातचीत के दौरान उन्हें एक संस्थान (17000 फीट फाउंडेशन) के बारे में पता चला जिसे सुजाता साहू चलाती हैं। सुजाता साहू पूर्व अध्यापिका और उनके एक दोस्त की मां भी थी। अनन्या ने उनसे बात की और लद्दाख की और रवाना हो गई। अब अनन्या के लिए लेह और लद्दाख के दूर-दराज़ इलाकों में जाना हर गर्मी छुट्टियों को काम बन गया है।
2015 में अनन्या लेह के लिक्त्सीय, तुरतुक और त्यालिंग जिलों में बच्चों को पढ़ाने गई थी। 2016 में लेह के माथो जिले में गई थी। वहाँ अनन्या ने बच्चों के लिए एक खेल मैदान बनवाने में मदद की है। जो उन्हें शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक विकास में भी सहायता करेगा। इन छुट्टियों में वो कारगिल जिले में लाइब्रेरी खुलवाने के प्रयास में लगी हुई हैं।
अनन्या कुल 600 गांवों और 1000 सरकारी स्कूलों के साथ काम कर चुकी हैं। जहाँ जनसुविधाओं की भारी कमी थी। अनन्या साल में एक बारी प्रोग्राम से कुछ ज्यादा करना चाहती थी। अनन्या ने इस कार्यक्रम में क्षेत्रिय लोगों को भी जोड़ा और जनसहयोग द्वारा धनराशि इकट्ठा करना शुरु किया।
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अनन्या कहती हैं 'मैंने संस्थान को बेहतरीन काम करते हुए देखा है पर कुछ हफ्तों के अलावा मैं कुछ और नहीं दे पाती। मैनें दूसरी तरह से मदद करने का रास्ता खोज लिया है। मैं धनराशि इकट्ठा कर के उनकी पहुंच लेह की सीमाओं से आगे बढ़ाने में लगी हुई हूं। मुझे अब लेह के कारगिल जिले में लाइब्रेरियों की स्थापना करनr है। मैंने 19 लाइब्रेरियों के लिए धनराशि इकट्ठा कर ली है। उम्मीद करती हूं कि मैं अपने बच्चों और कश्मीर के लिए ज्यादा से ज्यादा रकम जमा कर सकूं।'
अनन्या सिर्फ एक लड़की नहीं, बल्कि भारत के युवाओं की सोच है। जिसका दुनियाँ को देखने का नज़रिया अलग है। जो कुछ करना चाहते हैं समाज के लिए और जानते हैं शिक्षा से बढ़ा हथियार उनके पास कोई दूसरा नहीं। जो समझते हैं देश के और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और जो लगे हुए हैं इस कोशिश में जिससे समाज में समानता और खुशहाली आ सके।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव