पर्यटक वीजा पर खाड़ी देशों के लिए युवतियों की तस्करी
दुनियाभर में आज जानवरों की तरह इंसानों की ख़रीद-फ़रोख्त हो रही है। इन ग़ुलामों से कारख़ानों, बाग़ानों में काम कराया जा रहा है और साथ ही वेश्यावृति के लिए भी मजबूर किया जा रहा है...
दक्षिण भारत में आज भी देवदासी प्रथा के खिलाफ संघर्ष जारी है। अब दास प्रथा के बदले रूप में पूर्वी और दक्षिणी भारत में खाड़ी देशों के लिए पर्यटक वीजा पर युवतियों की तस्करी हो रही है।
इस पर काबू करने के जिम्मेदार सरकारी अफसर और पुलिस ले-देकर गूंगे-बहरे बन जाते हैं। विश्व स्तर पर देखें तो अमेरिका में लगभग 60 देशों से ढो लाए गए करोड़ों लोग ग़ुलामी की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं।
आज (23 अगस्त) यूनेस्को द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस है। मानव समाज में जितनी भी संस्थाओं का अस्तित्व रहा है, उनमें सबसे भयावह दास प्रथा है। दुनियाभर में आज जानवरों की तरह इंसानों की ख़रीद-फ़रोख्त हो रही है। इन ग़ुलामों से कारख़ानों, बाग़ानों में काम कराया जा रहा है। वेश्यावृति के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसे ग़ुलामों में बड़ी तादाद में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। दक्षिण भारत में आज भी देवदासी प्रथा के खिलाफ संघर्ष जारी है। अब दास प्रथा के बदले रूप में पूर्वी और दक्षिणी भारत में खाड़ी देशों के लिए पर्यटक वीजा पर युवतियों की तस्करी हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ आज, मादक पदार्थ और हथियारों के बाद तीसरे स्थान पर मानव तस्करी है। आज भी दुनियाभर में क़रीब पौने तीन करोड़ ग़ुलाम हैं। भारत का भी कोई शहर आज ऐसा नहीं, जहां भट्टों, चाय की दुनकानों, रेलवे स्टेशनों आदि पर बाल मजदूर काम करते नहीं दिख जाते हैं। इस पर काबू करने के जिम्मेदार सरकारी अफसर और पुलिस ले-देकर गूंगे-बहरे बन जाते हैं। विश्व स्तर पर देखें तो अमेरिका में लगभग 60 देशों से ढो लाए गए करोड़ों लोग ग़ुलामी की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। ब्राज़ील में हर साल लगभग सात हज़ार ग़ुलाम वहां लाए जाते हैं। पश्चिमी यूरोप में भी गुलामों की तादाद लाखों में है।
देश के 19 प्रदेशों में स्वयं सरकारी तंत्र तीन लाख से अधिक बंधुआ मज़दूरों की पहचान कर चुका है। सबसे ज़्यादा तमिलनाडु में 65-66 हज़ार बंधुआ मज़दूरों की पहचान की गई।
पश्चिमी अफ्रीका में बड़ी तादाद में ग़ुलाम हैं। इस बीच आधुनिक दौर में भी रूस में भी ग़ुलामी प्रथा को बढ़ावा मिला है। भले ही भारत सरकार ने 1975 में राष्ट्रपति के एक अध्यादेश के ज़रिये (परिवर्ति रूप) बंधुआ मज़दूर प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया हो, देश के 19 प्रदेशों में स्वयं सरकारी तंत्र तीन लाख से अधिक बंधुआ मज़दूरों की पहचान कर चुका है। सबसे ज़्यादा तमिलनाडु में 65-66 हज़ार बंधुआ मज़दूरों की पहचान की गई। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, कनार्टक, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, उड़ीसा, पंजाब, और उत्तराखंड में भी बड़ी संख्या में बंधुआ बच्चों की पहचान की जा चुकी है।
बिहार के गांव पाईपुरा बरकी का मामला आज भी नहीं भूला जा सकता है कि खेतिहर मज़दूर जवाहर मांझी को 40 किलो चावल के बदले अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ 30 साल तक बंधुआ मज़दूरी करनी पड़ी। देश में ऐसे ही कितने भट्ठे व अन्य उद्योग धंधे हैं, जहां मज़दूरों को बंधुआ बनाकर उनसे कड़ी मेहनत कराई जा रही है। प्रशासन इन मामले में मूक दर्शक बना रहता है।
हमारे देश में दास प्रथा के घिनौने रूप को देखना हो तो दक्षिण भारत में यह प्रथा आज भी देवदासी आदि कुप्रथाएं किसी न किसी रूप में जारी हैं। देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ गॉड', देव की दासी या पत्नी। प्रख्यात लेखक दुबॉइस ने अपनी पुस्तक 'हिंदू मैनर्स, कस्टम्स एंड सेरेमनीज़' में लिखा है कि एक जमाने में भारत में हर देवदासी को मंदिरों में नाचने, गाने के साथ ही खास मेहमानों के साथ शयन करना पड़ता था। यह वैतनिक नियुक्ति होती थी। जब देश आजाद हुआ, उसके कई दशक बाद भी देश में लाखों कन्याएं देवी-देवताओं को समर्पित होती रहीं। आज भी यह घिनौनी प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में कर्नाटक के मुख्य सचिव को दिए एक निर्देश में आगाह किया था कि वे सुनिश्चित करें, किसी भी मंदिर में किसी लड़की को देवदासी की तरह इस्तेमाल न किया जाए। इस के बावजूद धर्म के नाम पर औरतों के यौन शोषण का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है।
वर्ष 1990 एक सर्वे के दौरान 45.9 फीसदी देवदासियां महानगरों में वेश्यावृत्ति में संलग्न मिलीं। बाकी ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरी और दिहाड़ी पर काम करती पाई गईं। आज भी दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों में देह-व्यापार के दलदल में देवदासी कही जाने वाली स्त्रियों को धकेला जा रहा है, उनकी खरीद-फ़रोख्त चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में कर्नाटक के मुख्य सचिव को दिए एक निर्देश में आगाह किया था कि वे सुनिश्चित करें, किसी भी मंदिर में किसी लड़की को देवदासी की तरह इस्तेमाल न किया जाए। इस के बावजूद धर्म के नाम पर औरतों के यौन शोषण का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है।
कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों सहित देश के तमाम हिस्सों में औरतों को देवदासी बना कर धर्म की बलि चढ़ाया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन जानबूझ कर इस कुप्रथा से बेखबर बना रहता है। अभी कुछ वर्ष पहले की ही बात है। आंध्र प्रदेश के एक गांव के गरीब-दलित परिवार की जोगरी के घर वहां के मंदिर के पुजारी का उत्सव में शामिल होने के लिए बुलावा आया। पुजारी ने नौकर के हाथ पत्र भेजा कि देवता की कृपा हासिल करने के लिए जोगरी को चढ़ावे के रूप में अपनी एक-दो लड़कियों की देवता से शादी कर दे। आज भी आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में दलित महिलाओं को देवदासी बनाने की रस्म चल रही है।
'पोराटा संघम' की अध्यक्ष लक्ष्मम्मा देवदासी व्यवस्था के विरुद्ध लड़ रही हैं। हैदराबाद में जनसुनवाई के लिए लक्ष्मम्मा पांच-छह सौ देवदासियों के साथ जमा हुईं। इस जमावड़े में देवदासियों के नाजायज बच्चों पर भी बात चली। लक्ष्मम्मा ने मांग उठाई कि उन सभी बच्चों का डीएनए टेस्ट करवाकर उनके पिताओं का पता लगाने के साथ ही उनकी संपत्ति में इन बच्चों को भी हिस्सा दिलाया जाए। एक जन सुनवाई में शामिल रहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर विमला थोराट कहती हैं कि देवदासियों को तो इतना भी अधिकार नहीं है कि वह अपने दैहिक शोषण का विरोध कर सकें।
गरीब, जरूरतमंद महिलाओं की दासता अब तस्करों के कारोबार का रूप ले चुकी है। अभी इसी महीने अगस्त में कुछ दिन पहले काठमांडू एयरपोर्ट पर तैनात आव्रजन अधिकारी के मानव तस्करों से मिल कर नेपाली लड़कियों को खाड़ी के देशों में भेजने की घटना का खुलासा हुआ है। तस्कर काठमांडू हवाई अड्डे से लड़कियों के साथ यात्रा करते हैं और कुवैत या ओमान जैसे खाड़ी देशों तक पहुंचाते हैं। इससे पहले मई में एक अन्य घटना में पता चला कि गुंटूर जिले में नौकरी का झांसा देकर खाड़ी देशों के लिए लड़कियों की तस्करी हो रही है।
जुलाई में एक अन्य मामला सामने आया मेघालय का। राजधानी शिलांग स्थित थॉमसन रायटर फाउंडेशन को फोन पर बताया गया कि पर्यटक वीजा पर भी युवतियों को घरेलू सहायिका की नौकरी के बहाने म्यांमार के माध्यम से खाड़ी देशों को भेजा जा रहा है।
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