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इंटरनेट से कोरियन खाना बनाना सीख, बनारस के इस परिवार ने खोल दिया कोरियन रेस्टोरेंट

बनारस का एक परिवार बनारस में चलाता है एक ऐसा कोरियन रेस्टोरेंट, जहां विदेशी पर्यटकों की लगती है तगड़ी भीड़...

स्टार्टअप तभी सफल होता है जब आईडिया बिल्कुल ही लोगों की जरूरत के मुताबिक हो और सही जगह पर काम कर रहा हो। बनारस के गंगा घाट पर एक परिवार कोरियन होटल चला रहा है और बढ़िया कमाई कर रहा है।

रेस्टोरेंट की तस्वीर

रेस्टोरेंट की तस्वीर


अयोध्या के राजा राम और कोरिया के लोगों का एक मिथकीय संबंध है। वहां के किम वंश के लोग हर साल भारत आते हैं। इस लिहाज से उनके खाने का इंतजाम करके मॉन्ग कैफे बढ़िया काम कर रहा है।

ये सारी कोरियन डिशेज कहां से सीखी, इस सवाल पर उन लोगों ने बताया कि कुछ तो कोरिया से आए पर्यटकों ने सिखाया और बाकी सब इंटरनेट से सीख डाले। इसे कहते हैं डिजिटल इंडिया। 

घंटे घड़ियाल की आवाज से गुंजायमान गंगा के घाट अपनी रौ में चल रहे थे। मैं एक घाट से दूसरे घाट पर पदयात्रा कर रही थी। चलते-चलते राजा घाट पर आ गए। चलने में जो एनर्जी उड़नछू हो गई थी उसे वापस लाने के लिए पेटपूजा की आवश्यकता महसूस हुई। चाय नमकीन के अलावा कुछ दिखा नहीं आसपास तो हम घाट पर और ऊपर चढ़ गए। ऊपर इतनी पतली गलियां थीं कि एक साथ दो इंसान जा ही नहीं सकते। गलियों में भटकते हुए दिखा एक कैफे, मॉन्ग कैफे

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अंदर घुसते ही कुछ अन्जान भाषा के फ्रेम मढ़े पोस्टरों ने स्वागत किया। फिर अगले ही पल दो कोरियन से एक हिंदुस्तानी उनकी ही भाषा में बात करता नजर आया। दो मिनट बाद हमें देखकर वो एकदम बढ़िया हिंदी में हालचाल पूछने लगा, उसके बाद अपने साथी से भोजपुरी में बोला कि देखो इन लोगों का क्या ऑर्डर है। हमने मेन्यू देखा तो खूब सारी कोरियन डिशेज का जिक्र था। हम चौंक गए कि ये क्या माजरा है। या तो ये लोग कोरियन ही हैं या वहां रह कर आए हैं। लेकिन किचन में खड़ी एक युवती ने बताया कि वो लोग बनारस के ही रहने वाले हैं और ये कोरियन रेस्टोरेंट चलाते हैं।

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ये सारी कोरियन डिशेज कहां से सीखी, इस सवाल पर उन लोगों ने बताया कि कुछ तो कोरिया से आए पर्यटकों ने सिखाया और बाकी यब इंटरनेट से सीख डाले। मैंने सोचा, भई वाह मेरे डिजिटल इंडिया। मुझे इस अनोखे स्टार्टअप के बारे में जानकर जितना कुतूहल हुआ उतना ही ये आइडिया अत्यंत रोजगारोपरक लगा। चूंकि कोरियन मान्यताओं में भगवान राम का काफी जिक्र है इसलिए भारत में वहां से भारी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं। जाहिरन तौर पर उन्हें अपने देश के खाने ती याद आती ही होगी ऐसे में वो भारी संख्या में इस कैफे का रुख करते हैं। वहां लगे एक बड़े से वुडेन फ्रेम में कोरियन लोगों की खूब सारी तस्वीरें लगी हैं। कोरियन आगंतुक अपनी पासपोर्ट साइज फोटो वहां लगा देते हैं।

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बनारसियों का ये कोरियन मॉन्ग कैफे बढ़िया कमाई कर रहा है। कैफे के मालिक का मुख्य व्यवसाय नाव चलाना था। उन्होंने बड़ी ही समझदारी से मौते को भांपते हुए ये कैफे खोला और आज वो इस एक्जॉटिक फूड सेंटर के साथ साथ बोटिंग से भी कमाई कर रहे हैं। इन लोगों ने घर के हॉल को कैफे की शक्ल दे दी है और उससे ही सटा एक किचन बना दिया है। डीसेंट सा इंटीरियर है। कई सारी किताबें सजाकर रखी गई हैं। कुछ इंग्लिश में हैं, कुछ कोरियन में। भारत में घूमने वाली जगहों के बारे में कई सारी किताबें थीं। सारी डिशेज का दाम ठीक ठाक था।

मौसी और भांजी की जोड़ी किचेन संभाल लेती है और दो भाई बाहर ग्राहकों की आवभगत करते हैं। मेन्यू में भारतीय डिशेज भी हैं। कम लागत में ज्यादा लाभ कमाने का ये अच्छा तरीका है। साथ ही दो देश की संस्कृतियों और खान पान का अद्भुत सम्मिलन भी है। 

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