मिस व्हीलचेयर वर्ल्ड-2017 में भारत की दावेदारी पेश करने जा रही हैं राजलक्ष्मी
पोलैंड में आयोजित मिस व्हीलचेयर वर्ल्ड समारोह के लिए वह जल्द ही रवाना हो जाएंगी। राजलक्ष्मी कहती हैं कि यह सफर उनके लिए मुश्किल तो होगा लेकिन उनके लिए इसकी अहमियत बहुत ज्यादा है।
आज वह न केवल एक डेंटल कॉलेज में असिस्टैंट प्रोफेसर हैं बल्कि खुद का डेंटल क्लीनिक भी चलाती हैं। उनके डेंटल क्लीनिक का नाम है एसजे डेंटल स्क्वॉयर।
राजलक्ष्मी कहती हैं कि भारत में सबसे बड़ी चुनौती इन्फ्रास्ट्रक्चर की है। मैं सब लोगों की मानसिकता को एक तराजू में नहीं तौलूंगी, लेकिन समाज में ऐसे भी लोग हैं जो विकलांगता को अलग नजरिए से ही देखते हैं।
पेशे से डेंटिस्ट डॉ. राजलक्ष्मी एसजे के पास कई सारे टैलेंट हैं। डेंटिंस्ट तो वे हैं ही साथ में पेशे से ऑर्थोडेंटिस्ट भी हैं, फिलॉन्थ्रोपिस्ट बनना उनकी चॉइस थी। ऐडवेंचर पसंद राजलक्ष्मी 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया पीजेंट भी रह चुकी हैं। अब वह मिस व्हीलचेयर वर्ल्ड में भारत की ओर से दावेदारी पेश करेंगी। इस बार यह प्रतियोगिता पोलैंड में हो आयोजित हो रही है। बीडीएस की परीक्षा पूरी करने के बाद साल 2007 में नैशनल कॉन्फ्रेंस में पेपर प्रेजेंट करने चेन्नई जा रहीं है राजलक्ष्मी का रास्ते में ऐक्सिडेंट हो गया था। इस दुर्घटना में उन्हें स्पाइनल इंजरी हो गई थी और उनके पैरों को लकवा मार गया था। लेकिन राजलक्ष्मी ने कभी हार नहीं मानी। एक के बाद एक कई सर्जरियों के बाद भी उनका पैर ठीक नहीं हुआ।
डॉक्टरों ने कहा दिया कि उन्हें जिंदगी भर व्हीलचेयर पर ही बैठना पड़ेगा। लेकिन राजलक्ष्मी का सोचना है कि शारिरिक विकलांगता उनके सपने को पूरा करने और खुद की पहचान बनाने में कोई बाधा नहीं है। वह इतनी सकारात्मक रहती हैं कि किसी को भी उनपर यकीन नहीं होता। यह समय उनके लिए बेहद कठिन था। राजलक्ष्मी ने हार मानने की बजाय साइकॉलजी और फैशन में अपनी रुचि को आगे बढ़ाया। उन्हें जब मिस वीलचेयर इंडिया की प्रतियोगिता के बारे में पता चला तो उन्होंने इसमें भाग लेने का फैसला किया। साल 2014 में इस प्रतियोगिता को जीतना उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था।
राजलक्ष्मी का मानना है कि कि उन्हें एक ही जिंदगी में दो तरह की जिंदगी जीनो को मिल गई। शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद उन्होंने अपनी डिग्री पूरी की उसके बाद साइकॉलजी, फैशन डिजाइिनंग, वेदिक योगा जैसे कोर्स किए। 2015 के फैशन वीक में उन्होंने रैंप पर अपने जलवे बिखेरे थे। राजलक्ष्मी ने अपनी मेहनत और शिद्दत के बलबूते डेंटल सर्जरी में मास्टर्स किया और उसमें गोल्ड मेडल भी हासिल किया। हालांकि दुर्भाग्य की बात यह है कि गोल्ड मेडल होने के बावजूद उन्हें उस वक्त नौकरी नहीं मिली। लेकिन मेहनत कभी बेकार नहीं जाती और इसी के बलबूते आज वह न केवल एक डेंटल कॉलेज में असिस्टैंट प्रोफेसर हैं बल्कि खुद का डेंटल क्लीनिक भी चलाती हैं। उनके डेंटल क्लीनिक का नाम है एसजे डेंटल स्क्वॉयर। वह जेनेटिक्स रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा रही हैं और नेशनल कन्वेंशन्स में पेपर और पोस्टर प्रजेंट किये हैं।
वह स्कूलों में जाकर बच्चों के लिए फ्री में डेंटल हैल्थ कैंप लगाती हैं और व्हीलचेयर वाले बच्चों के लिए अलग से ट्रेनिंग की भी व्यवस्था करती हैं।
वह एसजे फाउंडेशन की चेयरपर्सन भी हैं। उनका यह फाउंडेशन शारिरिक रूप से विकलांग लोगों की मदद करता है। 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया का खिताब जीतने के बाद उन्होंने अगले साल ही अपने फाउंडेशन के जरिए मिस पीजेंट का आयोजन कराया था। वह स्कूलों में जाकर बच्चों के लिए फ्री में डेंटल हैल्थ कैंप लगाती हैं और व्हीलचेयर वाले बच्चों के लिए अलग से ट्रेनिंग की भी व्यवस्था करती हैं। राजलक्ष्मी ने व्हीलचेयर बास्केटबॉल और व्हीलचेयर डांस प्रोग्राम में भी हिस्सा लिया है। उनके काम को कई फोरम में सराहा जा चुका है और उन्हें कई सारे अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
भारत में लिकलांगों की स्थिति के बारे में बात करते हुए राजलक्ष्मी कहती हैं, 'भारत में सबसे बड़ी चुनौती इन्फ्रास्ट्रक्चर की है। मैं सब लोगों की मानसिकता को एक तराजू में नहीं तौलूंगी, लेकिन समाज में ऐसे भी लोग हैं जो विकलांगता को अलग नजरिए से ही देखते हैं। विकलांगता एक शब्द भर है जिसे एक स्थिति को बयां करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। विकलांगता मानसिक भी हो सकती है और शारिरिक भी।' अंतर सिर्फ ये है कि शारीरिक विकलांगता को देखा जा सकता है, मानसिक को नहीं। वह बताती हैं कि भारत में विकलांगों की स्वीकार्यता काफी कम है। पोलैंड में आयोजित समारोह के लिए वह जल्द ही रवाना हो जाएंगी। राजलक्ष्मी कहती हैं कि यह सफर उनके लिए मुश्किल तो होगा लेकिन उनके लिए इसकी अहमियत बहुत ज्यादा है।
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