रायपुर के छात्रों को सिर्फ 200 रुपये में पढ़ने की सारी सुविधाएं उपलब्ध करा रही सेंट्रल लाइब्रेरी
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
छत्तीसगढ़ के हर छात्र के लिए दिल्ली जैसे शहर में जाकर पढ़ाई करने का खर्च उठाना संभव नहीं, ऐसे में इस मुश्किल को दूर करने के उद्देश्य से राजधानी रायपुर में तीन साल पहले सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना की गई। आज इस लाइब्रेरी में रोजाना हजारों छात्र स्वध्ययन के लिए आते हैं और मन लगाकर शांतिपूर्ण माहौल में पढ़ाई करते हैं।
रायपुर सेंट्रल लाइब्रेरी में सैकड़ों छात्र सुबह से लेकर रात दस बजे तक पढ़ाई करने में जुटे रहते हैं। एक साथ इतने बच्चों को शांति से पढ़ते देख हैरत होती है, लेकिन उनसे बातें करने पर इसका राज पता चलता है। दरअसल यहां आने वाले सभी छात्र अपनी पढ़ाई को लेकर काफी गंभीर रहते हैं। इसीलिए पढ़ाई के सिवा वे यहां कुछ और नहीं करते।
रायपुर में सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना 15 अक्टूबर 2015 को की गई थी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसका उद्घाटन किया था। अब तक कुल 4,000 छात्रों ने यहां मेंबरशिप ली है। तीन फ्लोर पर बनी इस लाइब्रेरी में एक साथ 600 से भी अधिक छात्रों के पढ़ने की व्यवस्था है। यहां पर ई-लाइब्रेरी और ऑनलाइन कंप्यूटर से पढ़ने की व्यवस्था है। लाइब्रेरी में मुफ्त इंटरनेट और वाई-फाई की भी सुविधा है। रायपुर में इतनी आधुनिक लाइब्रेरी का होना अपने आप में बड़ी बात है, जो कि महानगरों में भी कम ही देखने को मिलती हैं।
अब समय ऐसा है, कि लोगों में पढ़ाई को लेकर काफी जागरूकता आ चुकी है और इसी जागरूकता का परिणाम है कि छोटे-छोटे शहरों के बच्चे भी यूपीएससी जैसे कॉम्पिटीशन एग्जाम की तैयारी के लिए दिल्ली का रुख करने लगे हैं। लेकिन दिल्ली में छात्रों और कोचिंग संस्थानों की भीड़ में पढ़ाई का माहौल ही गुम हो गया है। दूसरी बात दिल्ली जैसे शहर में जाकर पढ़ाई करने का खर्च उठाना हर किसी के लिए संभव भी नहीं है। इस मुश्किल को दूर करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तीन साल पहले सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी। आज इस लाइब्रेरी में रोजाना हजारों छात्र स्वध्ययन के लिए आते हैं और मन लगाकर शांतिपूर्ण माहौल में पढ़ाई करते हैं।
जीई रोड पर स्वीमिंग पूल परिसर में स्थित इस लाइब्रेरी में सैकड़ों छात्र सुबह से लेकर रात दस बजे तक पढ़ाई करने में जुटे रहते हैं। एक साथ इतने बच्चों को शांति से पढ़ते देख थोड़ी हैरत तो होती है, लेकिन उनसे बातें करने पर इसका राज पता चलता है। दरअसल यहां आने वाले सभी छात्र अपनी पढ़ाई को लेकर काफी गंभीर रहते हैं। इसीलिए पढ़ाई के सिवा वे यहां कुछ और नहीं करते। यहां तक कि आपस में बातचीत भी नहीं। इससे लाइब्रेरी के भीतर शांति का माहौल बना रहता है। हमने जब वहां के कुछ छात्रों से बात करनी चाही तो उन्होंने कहा कि अभी यहां शोर होगा हम कहीं और चलकर बात कर सकते हैं। छात्रों की इस संजीदगी को देख खुशी होती है, कि वे कितनी गंभीरता से अपने आसपास के माहौल को लेते हैं।
हमारी मुलाकात रविकांत देवांगन से हुई। उन्होंने बताया कि यहां 10,000 से भी ज्यादा किताबें हैं। यहां एसएससी से लेकर लॉ, मेडिकल, इंजीनियरिंग और यूपीएससी की तैयारी करने वाले बच्चे पढ़ाई करते हैं।
कॉम्पिटीशन एग्जाम की तैयारी करने वालों के लिए अहम है लाइब्रेरी
सबसे अच्छी सुविधा यहां के छात्राओं को मिलती है, जिन्हें कॉम्पिटीशन एग्जाम की तैयारी करने के लिए किसी दूसरे शहर नहीं जाना पड़ता। इसीलिए लाइब्रेरी में लड़कियों की संख्या लड़कों से कम नहीं दिखती। पिछले तीन साल से लगातार इस लाइब्रेरी की सदस्य बनकर यहां अध्ययन करने वाली सोनाली सिंह ठाकुर से योरस्टोरी ने इसके पीछे की वजह जाननी चाही, तो उन्होंने कहा, 'मैं पीसीएस की तैयारी कर रही हूं और उसके लिए यहां पढ़ने का काफी अच्छा माहौल मिल जाता है।'
सोनाली ने बताया कि यहां से पढ़कर कई लोग अधिकारी बने हैं। इस साल भी कई मेधावी छात्रों का चयन छत्तीसगढ़ पीसीएस में हुआ है। एक साथ कई सारे बच्चों को पढ़ते देख बाकी छात्रों में भी आत्मविश्वास आता है और पढ़ने की इच्छा भी जाग्रत होती है।
लड़कियों की सुरक्षा का रखा जाता है यहां खयाल
शहरों में लड़कियों की सुरक्षा की चिंता हमेशा बनी रहती है और इसीलिए मां-बाप देर रात तक अपनी बेटियों को घर से बाहर नहीं भेजते। लेकिन सेंट्रल लाइब्रेरी में लड़कियों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाता है। यहां पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि बीते तीन साल में यहां कभी ऐसी बुरी घटना नहीं घटी है। कंप्यूटर लैब में वीडियो के माध्यम से नोट्स तैयार कर रहीं शालिनी पीसीएस की तैयारी कर रही हैं। उन्होंने बताया, 'मैं हॉस्टल में रहती हूं और वहां कई सारी लड़कियां रहती हैं इसलिए वहां अच्छे से पढ़ने का स्पेस नहीं मिलता है। वैसे हॉस्टल में शाम 6 बजे तक ही बाहर निकलने की इजाजत है, लेकिन इस लाइब्रेरी की वजह से मुझे 10 बजे तक बाहर रहने की इजाजत मिल गई है।' साथ ही उन्होंने ये भी कहा, ‘लाइब्रेरी ने मेरी काफी मदद की है। यहां पर कई सारी अच्छी किताबे हैं, जो मेरे काम की हैं।’
क्या है ये 'पुस्तक दान महादान अभियान'?
सेंट्रल लाइब्रेरी की सदस्यता शुल्क सिर्फ 200 रुपये प्रतिमाह है। इतने कम पैसे में ही छात्रों को सारी सुविधा मुहैया करवाई जा रही है। लाइब्रेरी में सरकार की तरफ से तो किताबों की खरीद की गई है, लेकिन किताबों की संख्या बढ़ाने के लिए 'पुस्तक दान महादान अभियान' भी चलाया जाता है। शहर के लोग अपने पास पड़ी किताबें बच्चों के लिए दान कर देते हैं।
पुस्तक दान महादान अभियान के तहत अब तक पांच हजार से ज्यादा किताबें मिल चुकी हैं। अभियान में हर दिन सौ से ज्यादा किताबें दान में दी जा रही हैं। किताबें दान करने वाले लोगों को जिला प्रशासन की ओर से अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया जाता है। लाइब्रेरी में आकर पढ़ाई करने वाले रविकांत देवांगन बताते हैं, कि पहले वे कोचिंग या घर में पढ़ाई करते थे, लेकिन उतना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते थे। पिछले एक साल से वह लाइब्रेरी में आ रहे हैं और मन लगाकर पढ़ाई कर रहे हैं।
युवाओं के करियर से जुड़ी उलझनों को भी सुलझा रही है ये लाइब्रेरी
छोटे शहरों के छात्रों को करियर से जुड़ी कई उलझने होती हैं। उनके पास ज्यादा जानकारी नहीं होती है और इस वजह से उन्हें कई बार समझ नहीं आता कि भविष्य किस क्षेत्र में बनाया जाए। इसका भी समाधान करने के लिए सेंट्रल लाइब्रेरी में हर शनिवार को काउंसिलिंग की व्यवस्था की जाती है जिसमें बड़े आईएएस और पीसीएस अधिकारी बच्चों से रूबरू होते हैं और उनकी दुविधाएं हल करते हैं।
दिल्ली से आईएएस की कोचिंग कर वापस शहर लौटकर सेल्फ स्टडी करने वाले बृजेष शंकर तिवारी ने येरस्टोरी को बताया कि पहले जहां छात्र पढ़ने के लिए दिल्ली और पुणे जाते थे वे अब यहीं पर रहकर अपनी तैयारी करते हैं। छात्रों की संख्या बढ़ जाने पर अब ये लाइब्रेरी एकदम फुल रहती है। इसीलिए हर फ्लोर पर एक कारपेट एरिया बनाया गया है जहां छात्र दरी पर बैठकर पढ़ाई करते हैं।
आज जहां बड़े शहरों में जाकर कॉम्पिटीशन की तैयारी करना आम आदमी के बस से बाहर होता चला जा रहा है वहां ऐसी पहलें हमें भरोसा दिलाती हैं कि सरकारी प्रयास से भी साधारण परिवार से आने वाले बच्चों के लिए अच्छी सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती हैं। इस लाइब्रेरी की सफलता को देखकर बस यही कहा जा सकता है कि देश के बाकी छोटे शहरों में भी ऐसी ही व्यवस्था हो जाये तो बच्चों की काफी मदद हो जाएगी। ये बच्चे जो हमारे भविष्य हैं अगर इन्हें ऐसी ही सुविधाएं मिलती रहें तो देश में एजुकेशन सिस्टम का नजारा बदलते देर नहीं लगेगी।
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